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कविवर जिनहर्ष गीतम्
कामिनि कांचन तजवां सोहिलां, सोहलु तजवु गेह । पणि जन अनुवृत्ति तजवी दोहली, 'जिनहरई' तजी तेह || ६ || श्रीसाहायक पणि सुभ आवी मल्या, श्री' वृद्धि विजय' अणगार | व्याधि उपन्नइरे सेवा बहु करी, पूरण पुण्य अवतार ॥७॥ आराधना करावs साधुनै, जिन आज्ञा परमाण |
लख चुरासीरे योनि जोव मावतां, ध्याता रूडुंख ध्यान || || पंच परमेष्टीरे चित्तइ ध्याइतां, गया स्वर्गे मुनिराय । मांडवी कीधोरे रुडी श्रावके, निहरण काम कराय || || 'पाटण' मांहिरे धन ए मुनिवरु, विचर्या काल विशेष । अखंडपणे व्रत अंत समइ ताई, धरता सुभ मति रेख ||१०|| धन 'जिनहरष' नाम सुहामणु, धन २ ए मुनिराय । नाम सुहावइ निस्पृह साधनु', 'कवीयण' इम गुणगाय ॥११॥
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