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________________ श्रीजिनरतनसूरि गीतानि २४३ वाणी सुधारस वरसइ, सुणिवा कुं जन मन तरसइ । स०।८। इम 'खेमहरष गुण बोलइ, पूज्यजी के कोइ न तोलइ । स०।९। किरहोरमें श्राविका रजी पठनार्थ कविके स्वयं लिखित पत्र ३ संग्रहमें) (४) ढाल-पोपट पंखियानी सुण रे पंथिया कब आवइ गच्छराज, सफल विहाणउ आज । सरिया वंछित काज, भेट्या श्री गच्छराज । सुणि रे पंथिया कब (आवइ) गच्छराज । आंकणी। उभी जोवू वाटडी, आइ कहइ कोई मुझ्झ । सोवन जीभ वधामणी, देखें पंथो हो तुझ । १ । सु० । सुमति गुपति धरता थका, पालइ शुद्ध आचार । किरिया आचरता थका, साथइ बहु अणगार । २ । सु० । 'लुणोया गोत्रइ दीपता, साह तिलोकसी जाणि । 'तारादे' जननी भली, सुत जनम्या गुग खानि । ३ । सु० । भावइ संजम आदर्यउ, जननी सुत सुखकाजि । जिणवर भाषित मारगइ, दीख्या श्रा 'जिनराज' । ४ । सु० । संवत 'सतरहिसइ' भलइ, मास 'आषाढ़' प्रमाण । श्रो 'जिनराजई' थापिया, सुकलइ 'सप्तमि' जाणि । ५ । सु० । गामागर पुर विहरता, जलधर नी परि जाणि । भवियण नइ पडिबोधता, भेटउ ऊात भाण । ६ । सु० । 'कनकसिंह' गणिवर कहइ, दिन दिन यूं आसीस। श्री जिनरतन सुरिंदजी, प्रतपउ कोडि वरीस । ७ । सु० । इति श्री गुरु गीतम् ( पत्र १ हमारे संग्रहमें तत्कालीन लि०) ____Jain Education International 2010_05 For Private &Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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