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________________ २४४ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह www.nxnwwwana निर्वाण गोतम् (८) ढाल-पोपट पंखीया जाति 'श्री जिनरतन' सूरीसरो, लघु वय संयम धार । उद्यत विहार संचर्या, 'उग्रसेन पुर' सिणगार ।। १ ।। सुहगुरु पूज्य जी, मुखि बोलउ इक बात । प्रीतम सहगुरू, कांइ निसनेह अपार । वल्लभ पूज्यजी तुं मुझ प्राण आधार । जीवण पूज्यजी तुम विण कवण आधार ॥ आंकणी ।। धन पिता 'तिलोकसी', 'तेजलदे' उर धार । जिणइ एहवउ पुत्र जनमीयउ, सयल जीव सुखकार ॥२॥ 'श्रावण बदि सातिम' दिनइ, कीध ( अणशण ) उच्चार । चउविहार सुध भावस्युं, पाल्यउ निरतीचार ॥३॥ श्रावक श्रावइ वांदिवा, ओसवाल अनइ श्रीमाल । दरसण दीठां सुख हुवइ, नावइ आल जंजाल ॥४॥ च्यार प्रहर लगि तिहां धरी, छोड्याज राग न (इ) द्वेष। सहु जीवसुतिहां खामणइ, पाम्या स्वग ना सुख ।।५।। आंसु जल चउसर वहइ, छोड्या केस कलाप । देह पछाडइ भूमिस्युं, शिष्य करे रे विलाप ।।६।। हिव पर्व पजूसण आवीया, धरम कहउ मन कोडि। श्री संघ जोवइ वाटडी, वांदणि उपरि कोडि ॥७॥ तुम्ह सरिखा संसार मइ, देख्या नहीं दीदार । लोचन तृपति पामइ नहीं, जुबुं हुं सउवार ।।८॥सहु० मी० ।। युग प्रधान श्री पूज्यजी, श्री 'जिनरतन' सुरिंद। सयल संघनइ सुखकरू, 'विमलरतन' आणंद ।।६।। (पं० मानजी लि० पत्र १ से) Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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