________________
२४२
ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
आवउ तुम्ह इण देस मइ रे लाल० । आ० । 'लुणिया' वंसइ लखपती रे, तिलोकसी' साह मल्हार रे ।सु०॥ 'तारादे' उरि हंसलउ रे लाल, कामगवी अनुहार रे । सु०।२। आग श्री 'जिनराज सूरीसरई' रे, सइंहथ दोधउ पाट रे । स०। वड वखती वइरागीयउ रे लाल, कलि गौतम नउ घाट रे ।स०३।आ। शीलइ करि थूलभद्र समउ रे, रूपइ वइर कुमार रे ।स। पालइ पंच महाव्रत रे लाल, लोभ तउ नहीय लिगार रे ।स०४|| वाणी सुधारस वरसतउ रे, सजल जलद अनुहार रे । स०। आगम सूत्र अरथ भरयउ रे लाल, श्री खरतर गणधार रे ।स।आ. श्री संघ हरष अछइ घणउ रे, बंदिवा तुम्हारा पाय रे । स० । तुझ मुख कमल निहालिवा रे लाल, चाह धरइ राणाराय रे ।स०६। "जिनराज' पाटइ चिर जयउ रे, सूहव धइ आसीस रे । स० । 'खेमहरष' मुनि इम भणइ रे, लाल जीवउ कोडि वरीस रेस०आ
(३) राग:-मल्हार, ढाल व दलोरी 'श्री जिनरतन' सूरिंदा, दीपइ मुख पूनिम चंदा। सहगुरु वंदड वे ॥१॥ 'लुणीया' वंस विराजइ, दिन २ ए अधिक दिवाजइ । स०१२ 'पाटण' मई पद पायउ, सब श्रावक जन मन भायउ । स०।३। 'तिलोकसी' शाह मल्हारा, 'तारा दे' उरि अवतारा । स०।४। गुणे गौतम गणधारा, गुरु रूपइ वइरकुमारा । स० ।५ । शीलइ तउ थूलभद्र सोहइ, छत्रीस गुणे मन मोहइ । स०।६। आगम अरथ भंडारा, जिण शासण मइ सिणगारा । स०।७।
Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org