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________________ २३६ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह संघ नइ वांदिवि सुपरइ, पूज्यजी पटधार रे । विचरता 'मरुधर' देस मांहे, साधु नइ परिवार रे ।।४।। आ०|| संघ आग्रह आविया हिव, पूज्य 'बीकानेर' रे । 'नथमल' 'वेणई' उच्छव कीधउ, खरचीयो धन ढेर रे ॥५||आ०|| उपदेस निज प्रतिबोध श्रावक, करता उप्र विहार रे। 'वीरमपुरई' चउमास आव्या, संघ आग्रह सार रे ।।६।। आ०॥ चउमास पारण आविया हिव, 'बाहडमेर' सुजाण रे । चउमास राख्या संघ मिलकर, पूज्यजी परमाण रे ॥७॥ आल। तिहां थी विचरी 'कोटडई' मह, चतुर करी चउमास रे। . पारणइ 'जेसलमेरु' श्रावक, तेडीया उल्हास रे ।।८। आ०|| पइसार उच्छव 'गोप' कीधो, लीयउ लखमी साह रे । याचकां बहुलउ दान दोघउ, मन धरी उच्छाह रे ।।६।। आ०॥ संघ आग्रह च्यारि कीधा, पूजजी चउमास रे। धन-धन'जेसलमेरि'श्रावक,लोक मय (नइ?)साबास रे॥१०॥आ०॥ 'आगरा' नइ संघ आग्रह, घणा कीध विशेष रे । . 'आगरई' गच्छराज आव्या, श्राविकां मन देख रे ॥ १ ० ॥ हुकम 'बेगम' तणउ पामी, 'मानसिंह' महिराण रे । पइसार उच्छव अधिक कीयउ, मेलीया रायराण रे ।। १२ ।आ.. हरखीया मन मांहि सहु श्राविक, वरतीया जयकार रे । याचकां वांछित दान दोघउ, प्रबल पुन्य प्रकार रे ॥१३।। आ०॥ तप नियम व्रत पचखांण करतां, धारतां धर्म ध्यान रे । निज गुणे सगले श्रावकां मन, रंजीया असमान रे ॥१४॥आ०॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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