SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 412
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीजिनरतनसूरि निर्वाण रास २३५ निज उपदेसइ भवियण बूझवइ, करइ अनेक बिहार। पाल (इ) मन सुधइ मुनिवर भलउ, चारित्र निरतीचार ।। ६ ॥श्री०॥ गुण अनेक सुणी श्री पुजजी, तेडावि निज पास । 'अहमदाबाद' नगर मांहे आपियउ, 'पाठिक पद' उल्हास ॥१०श्री०॥ जुगते भलिपर 'जयमल' 'तेजसी', अवसर लही एकन्त । आणंद सुं उच्छव कीधउ तिहां, खरच्यउ धन धरि खंत ॥११॥श्री०॥ 'पाटण' नगरई पूज्य पधारिया, चतुर रह्या चउमास । सूत्र सिद्धांत अनेक सुणावतां, सहु नी पूरइ आस ।। ११ ।। श्री०॥ संवत 'सतरइ सय' वरसइ भलइ, श्री 'जिनराज सूरिस'। .. सइंहथ रतन सूरोसर'थापीया,मनि धरि अधिक जगीस ॥१३।।श्री०।। 'अषाढ़ा सुदि नवमी' शुभ दिनइ, थिर निज पाटइ थापि । श्री 'जिनराज' सरगि पधारिया, त्रिविधि समावि पाप ॥१४॥श्री०॥ श्री 'जिनरतन' तणी मानी सहु, देस प्रदेशइ आण । ठामि २ सिंघइ तेडावीया, गणिता जन्म प्रमाण ॥ १५ ॥ श्री० ॥ ढाल:-तूगीया गिर शिखर सोहइ, एहनी। चउमासि पारण करी सदगुरु, कीयो तेथी विहार रे । आविया 'पाल्हणपुरइ' पूजजी, कीयउ उच्छव सार रे ॥ १॥ आज धन 'जिनरतन' वांद्या, गया पातक दूर रे। ... श्रीसंघ सगलउ मनि हरख्यउ, प्रकट पुण्य पडूर रे ।।२।। आ०॥ 'सोवनगिरी' श्री संघ आग्रहि, आवीया गणधार रे । पइसार उच्छव सबल कीधर, सीठ (सेठ?) पीथइ' सार रे ॥शाआ०॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy