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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
॥ श्री कमलहर्ष कवि कृत ॥ श्रीजिनरतनसूरि निर्वाण रास
सरसति सामणि चरण कमल नमी, हीयड़इ सुगुरु धरेवि। श्री 'जिनरतन सूरीसर' गुरु तणा, गुण गाऊं संखेवि ॥१॥
_ 'श्रीजिनरतनसूरीसर' समरिये ।। महियल मोटउ 'मरुधर' देस मइ, 'शुभ सेरुणा' गाम । धूना(धनी?)लोक वसइ सुखीयां जिहां,धरमी अति अभिराम ।।श्री०॥ वसइ तिहां वर शाह 'तिलोकसी', चावउ चतुर सुजाण । 'ओसवाल' वंशे उन्नति करू, जुगति करइ वखांण ॥ ३ ॥श्री०॥ तासु घरणि 'तारा दे' (दी) पती, सीलवती सुचंग । रूपवन्त शोभा में आगलो, सरस सुकोमल अङ्ग ॥ ४ ॥श्री०॥ रतन अमोलख जिणइ जनमियो, कुल मण्डण कुल भाण । मात-पिता बन्धव सहु हरखिया, जाणइ राणो राण ॥ ५ ॥श्री०॥ 'आठ वरस' नइ मन माहि उपनो, लघु वय पिण वैराग । माया ममता सगली छांडिने, दिन २ चढ़तइ बान (भाग?) ॥६श्री।। श्री 'जिनराज सूरिश्वरु' गुरु कन्है, आणी मन आणन्द । निज 'बांधव' 'माता' तीने मिली, लोधी दीख मुणिंद ।। ७ ॥श्री०॥ शास्त्र अनेक भण्या थोडइ दिनइ, बुद्धि तणइ विस्तार । चउद वरस नइ संयम आदर्यो, सफल गिणी अवतार ।। ८॥श्री०।।
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