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________________ श्रीजिनरतनसूरि निर्वाण रास चउमास चावी तिन कीधी, पूजजी परसिद्ध रे । चउमास चौथी वले राख्या, संघ आग्रह किद्ध रे ॥१५॥ आ०॥ दिन दिन चढ़तउ सुजस महियल, गुण अधिकइ गच्छराज रे । दुत्तर दुखसायर पडतां, जगत जाणे जिहाज रे ।। १६ । आ०|| करजोडी इम विनबु एहनी ढाल:इण विधि इम रहतां थकां, पूजजी नइ होडोलइ असमाधि । कारण जोगइ उपनी, करमे पिण हो हिव अवसार लाध ॥ १ ॥ तुम्ह विण पूजजी किम सरइ । 'आषाढ़ा सुदि दसम' थी, वपु बाधी हो वेदन विकराल । ध्यान एक अरिहन्त नो, मनि राखइ हो छांडी जंजाल ॥ २ ॥ तु०॥ वइरागइ मन वालियउ, नवि कीधा हो ओषध उपचार । संवेगी सिर सेहरो, 'चउरासी' हो गच्छ मई श्रीकार ।। ३॥ तु०॥ अल्प आउखो जाणीनइ, पोतानउ हो पूजजी तिण वार । सईमुख अणशण आदर्यो, सवि छंडी हो पातक आचार ॥४॥ तु॥ क्रोध लोभ माया तजी, तजीया बलि हो आठे मद मोह । पापस्थानक सवि परिहा, जगमांहि हो अति बंधती सोह ॥५॥तु०॥ मन वचन कायाइं करी, वलि लागा हो व्रत ना दूषण जेह । ते आलोयां आपणा, गच्छ नायक हो गिरुआ गुण गेह ॥ ६॥ तु०॥ सरण च्यारे उच्चरी, आराधी हो सूधा गुरु देव । कलमल पाप पखालिनइ, षट् जीवन हो पाली नित मेव ।। ७ ॥ तु०॥ जीव अनेक छोडाविया, याचक मिली हो धन खरची अनन्त । दुखीयां दान दियउ घणो,धन २धन हो मुनि लोक कहन्त ॥८तु०॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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