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________________ श्री जिनरंगसूरि गीतानि २३१ श्री जिनरंगसूरि गीतानि ।। त ॥ ढाल-हंसला गीतनी जाति ॥ मनमोहन महिमा निलउ, श्री रंगविजय उवझायन रे । ___ सेवत सुरतरु सम वड़इ, सबहि कइ मनि भाय न रे ॥शाम०॥ संवत 'सोल अठहत्तरई', जेसलमेरु मंझारि न रे । फागुण बदि सत्तमि दिनइ, संयम ल्यइ शुभ वार न रे ॥२॥म०।। अनुपम रूप कला निला, ज्ञानचरण आधार न रे। भवियण नर प्रति बूझवइ, परिहर विषय विकार न रे ॥३॥०॥ निज गच्छ उन्नति कारणइ, श्री जिनराज सुरिन्द न रे । पाठक पद दीधउ विधइ, प्रणमइ मुनि ना वृन्द न रे ॥४॥ म०|| कुमति मतंगज केसरो, महिमागर मतिवन्त न रे । मानइ मोटा महिपती, महिमा मेरु महन्त न रे ॥५॥०॥ 'सिंधुड़ वंश दिनेसरू, 'सांकरशाह' मल्हार न रे । _ 'सिन्दूर दे' उर हंसलउ, 'खरतरगच्छ' सिणगार न ॥६॥ामा बड़ शाखा जिम विस्तरउ, प्रतपउ जा रवि चन्द न रे। . "राजहंस' गणि वीनवइ, देज्यो परम आणंदन रे ॥णाम०॥ ॥ इतिश्रो पाठक गोतम् , कृतं पं० राजहंस गणिना ।। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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