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ऐतिहासिक जैन काव्य-संग्रह श्री 'जिनचन्द्र सूरीसर' सांभलो, नरमणि मण्डित भालोजी। तेहनइ पाटइ श्री जिनपति'थया,सकल साधु भूपाल जी।।२१॥धन०॥ धन धन श्रीखरतर गच्छ चिरजयो, जिहां एहवा मुनिराजो रे । शुद्ध क्रिया आगम में जे कही, ते भाखइ सिव काजो जी ।२२।धन। सूरि 'जिगेसर' सरस्वति मुख वसइ, जसु महिमा नो निवासो जी। 'जिनप्रबोध' प्रतिबोधन जे करइ,अमृत वचन विलासोजी ।।२३।।धन० 'श्रीजिनचन्द्र' यतीसर तेहथी, श्रीजिनकुशल' प्रधानोजी। जसु अतिशय करि त्रिभुवन पूरियो,कुण हुवइ एह समानोजी।।२४॥ध 'बाल धवल सरस्वती' विरुदइ करी, लाधी जिण विख्यातो जी।। 'पदम सूरीसर' तसु पाटइ थयो, लबधि सूरि सुबहोतो जो ।।२५।।धन श्री 'जिनचन्द्र' 'जिनोदय' यतीवरु, धीरम धर 'जिनरायो' जी। श्री 'जिनभद्र' थयो सुविहित धणी, भवसागर वर पाजो जी ॥२६॥ध 'जिनचन्द्र' 'समुद्र' सूरीसर सारिखो,कुण हुवइ रषि गुण पूरि जी। श्री 'जिनहंस' मुनीसर मानोयइ, श्रो 'जिनमाणिक' सूरि जी ॥२७॥ पातिसाहि अकवर प्रतिबोधीयो, अमर पडह जगि दिद्धो जी। पंचनदी जिणि साधी साहसइ, चन्द्र धवल जस सिद्धोजी ॥२८॥ 'युगप्रधान' पद साहइ जसु दोयो, श्री 'जिनचन्द' सूरिंदो। उबारी 'खंभायत' माछली, चिरजयो जां रवि चन्दो जी ॥२६॥धन वीर थकी अनुक्रमि पट्टइ हुआ, जे जे श्री गच्छ धारो जी। नाम ग्रही ते प्रभण्या एहना, कुण पामइ गुण पारो जी ॥३०॥धन०॥ 'जेसलमेरु' विभूषण 'पास' जी, सुप्रसादइ अभिरामो जी। श्री 'जयसोम' सुगुरु सोसइमुदा, 'गुणविनय'गणि शुभ कामो जी॥३१॥
॥ इति ॥
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