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________________ २१८ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह चारित्रसिंह कृत (२) गुर्वावली सिव सुखकर रे, पास जिणेसर पय नमउ, गोयम गुरु रे, चरण कमल मधुकर रमउ । कवि जननी रे, दिउ मुझ शुभ मति निरमली, रंगि गाइसुरे, सुविहित गच्छ गुरावली ॥ सुविहित गच्छ गुरावली किर, जेम भवियण गाइयइ । बहु सिद्धि रिद्धि निधान उत्तम, हेलि सिवपुर पाइयइ । जे नाण दर्शन चरण उज्जल, 'चउदसयवावन' बली । गणधार सवितं भावि वंदो, एह निर्मल मनि रली ||१|| सिव रमणी रे, वर सिरि वीर जिणेसरु, गुण गण निधि रे,' गोयम' स्वामी गणहरु | उपगारी रे सुखकारी भवियण तणइ, इक जोहा रे, तेहनां गुण कहु किम थुणइ || किम थुणइ तेहना गुण महोदधि, कबहि पार न पावए । जिसु मधुर ध्वनि कर देव दानव, किन्नरी गुण गावए ॥ जसु नाम जिह्वा झरइ अमृत, पढम मंगल कारणो, सो वीर जिनवर पढम गणधर, जयो दुख निवारणो ||२|| 'गच्छाधिप' रे, 'सोहम' सामी गुण निलो, तसु पाटहि रे 'जंबू सामी' जग तिलो । वर कंचण रे, कोटि 'नवाणूं' परिहरी, सुभ भावइ रे, परणी जिह संयम सिरी ॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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