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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह चारित्रसिंह कृत
(२) गुर्वावली
सिव सुखकर रे, पास जिणेसर पय नमउ,
गोयम गुरु रे, चरण कमल मधुकर रमउ ।
कवि जननी रे, दिउ मुझ शुभ मति निरमली,
रंगि गाइसुरे, सुविहित गच्छ गुरावली ॥
सुविहित गच्छ गुरावली किर, जेम भवियण गाइयइ ।
बहु सिद्धि रिद्धि निधान उत्तम, हेलि सिवपुर पाइयइ । जे नाण दर्शन चरण उज्जल, 'चउदसयवावन' बली ।
गणधार सवितं भावि वंदो, एह निर्मल मनि रली ||१|| सिव रमणी रे, वर सिरि वीर जिणेसरु,
गुण गण निधि रे,' गोयम' स्वामी गणहरु |
उपगारी रे सुखकारी भवियण तणइ,
इक जोहा रे, तेहनां गुण कहु किम थुणइ || किम थुणइ तेहना गुण महोदधि, कबहि पार न पावए ।
जिसु मधुर ध्वनि कर देव दानव, किन्नरी गुण गावए ॥ जसु नाम जिह्वा झरइ अमृत, पढम मंगल कारणो,
सो वीर जिनवर पढम गणधर, जयो दुख निवारणो ||२|| 'गच्छाधिप' रे, 'सोहम' सामी गुण निलो,
तसु पाटहि रे 'जंबू सामी' जग तिलो ।
वर कंचण रे, कोटि 'नवाणूं' परिहरी,
सुभ भावइ रे, परणी जिह संयम सिरी ॥
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