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ऐतिहासिक जन काव्य-संग्रह
साध्वी हेमसिद्धि कृत ॥लावण्यसिद्धि पहुतणी गीतम्॥
राग :-सोरठ दहा:-आदि जिणेसर पय नमी, समरी सरसति मात ।
गुण गाइसुगुरुणी तणा, त्रिभुवन मांहि विख्यात ॥१॥ वेलि ढाल:-जे त्रिभुवन माहि विख्यात, 'लावनसिद्धि' गुण अवदात
___ 'बीकराज' साहकी धीया, वइरागइ चारित्र लीया ॥२॥ 'गूजर दे' माता रतन्न, सहू लोक कहइ धन धन्न ।
शीलादिक गुण करि सीता, सहु दुनीया मांहि वदोता ॥३॥ जिण माया मोह निवार्या, भवियण भव-जलनिधि तार्या ।
सूधा पंच महाव्रत पालइ, त्रिण्ह गुप्ति सदा रखवालइ ।। ४ ।। दहा:-अढ़ार सहस शीलंगधर, टालइ सगला दोस ।
सुन्दर संजम पालती, न करइ माया मोस ॥ ५ ॥ न करइ तिहां माया मोस, वलि निज घट नाणइ रोस ।
धन धन ते श्रावक श्रावी, गुरुणी नइ प्रणमे आवी ।। ६॥ मीठी तिहां अमीय समाणी, सुन्दर गुरुगी नी वाणी। ___ सुणि सुणि बूझइ भवि लोक, दिनकर दंसणि जिम कोक ।। ७ ।। पहुतणी 'रत्नसिद्धि' पाटइ, दिन प्रति जस कीरति खाटइ ।
नवनिध हुइ गुरुणी नई नामइ, मनवंछित भवीयण पामइ ॥८॥
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