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________________ २१० ऐतिहासिक जन काव्य-संग्रह साध्वी हेमसिद्धि कृत ॥लावण्यसिद्धि पहुतणी गीतम्॥ राग :-सोरठ दहा:-आदि जिणेसर पय नमी, समरी सरसति मात । गुण गाइसुगुरुणी तणा, त्रिभुवन मांहि विख्यात ॥१॥ वेलि ढाल:-जे त्रिभुवन माहि विख्यात, 'लावनसिद्धि' गुण अवदात ___ 'बीकराज' साहकी धीया, वइरागइ चारित्र लीया ॥२॥ 'गूजर दे' माता रतन्न, सहू लोक कहइ धन धन्न । शीलादिक गुण करि सीता, सहु दुनीया मांहि वदोता ॥३॥ जिण माया मोह निवार्या, भवियण भव-जलनिधि तार्या । सूधा पंच महाव्रत पालइ, त्रिण्ह गुप्ति सदा रखवालइ ।। ४ ।। दहा:-अढ़ार सहस शीलंगधर, टालइ सगला दोस । सुन्दर संजम पालती, न करइ माया मोस ॥ ५ ॥ न करइ तिहां माया मोस, वलि निज घट नाणइ रोस । धन धन ते श्रावक श्रावी, गुरुणी नइ प्रणमे आवी ।। ६॥ मीठी तिहां अमीय समाणी, सुन्दर गुरुगी नी वाणी। ___ सुणि सुणि बूझइ भवि लोक, दिनकर दंसणि जिम कोक ।। ७ ।। पहुतणी 'रत्नसिद्धि' पाटइ, दिन प्रति जस कीरति खाटइ । नवनिध हुइ गुरुणी नई नामइ, मनवंछित भवीयण पामइ ॥८॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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