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________________ श्री करमसी संथारा गीतम् जन्म 'जेसाणई' जेहनउ, 'चांपा शाह' मल्हार । 'चांपलदेवि' उरि धर्यउ, 'ओसवंश' नउ सिणगार ।। 'ओसवंश' नउ सिणगार ए मुनि, दुकर करणो जिणि करी । अन्नेक जामन मरण हुंती, छटउ अणसण उच्चरी ।। 'करमसी' मुनि मन कीरयउ करड़उ नेह नाण्यउ देहनउ । ___मन मदन करडइ क्षेत्र जीत्यउ, जन्म 'जेसाणई' जेह नउ॥४॥ जेहनी प्रशंसा सुर करइ, मानव केहो मात्र । - सोम मुनीश्वर इम कहइ, धन धन एह सुपात्र । धनं एह पात्र सुसाधु सुन्दर, परतखि मुनि पंचम अरइ । धन जन्म जीविय जाणि एहनउ, परगच्छी महिमा करइ ।। मास की संलेखण करि नइ, अधिक दिन वीस ऊपरइ । ___ए अमर जग मई हुअउ इणि परि, प्रशंसा सुर नर कर।५ 'वइसाखई' संतोषस्युं, 'सातमि बदि' उच्चार । कियउ संथारउ करमसी, कलि मइं धन अणगार ॥ अणगार धन्ना शालिभद्र जिम, तप अनेक जिणइ किया । 'सइ अढी बेला निवी आंबिल' करी जिण अणसण लिया ।। चारित्र पंचे वरस पाली, सु ल्यउलाई मोक्ष स्युं । आणंद खरतर गच्छ वाध्यउ, वइसाखइ संतोष स्यु॥६॥ ॥ इति गीतम् ॥ --***- - Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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