SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 383
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०६ ऐतिहासिक जेन काव्य संग्रह कवि ललितकीर्ति कृत श्री लब्धिकल्लोल सुगुरु गीतम् ।। गुरु 'लब्धिकल्लोल' मुणिन्द जयउ, जाणे पूरव दिसि रवि उदयउ। मन चिन्तित कारिज सिद्धि थयउ, दुःख दोहग दुरई आज गयउ ।। 'सोलइ सइ इक्यासी' वर वरसइ, भवियण लोकण देखण हरसइ । गच्छपति आदेशई 'भुज' आया, चउमास रह्या श्री संघ भाया ॥२॥ "काती बदि छट्टि' अणसण सीधो, मानव भव सफल जिणे कीधो। ले परभव ना संबल बहुला, पहुंता सुर सुधरस(?) भुवन वहिला ॥३॥ आवी सुरपति नरपति निरखइ. 'मगसर बदि सातम' बहु हरखइ । पगला थाप्या चढतइ दिवसइ, निरखो तन वयन नयन विकशइ ॥४॥ थिर थान भलो 'भुज्ज' मई सोहइ, सुर नर किन्नर ना मन मोहइ । सद्गुरु परतिख परता पूरइ, सहु संकट विकट विघन चूरइ ।।५।। 'श्रीमाली' कुल कैरव चंदा, साह 'लाडण' 'लाडिम' दे नंदा । दउलति दायक सुरतरु कंदा, प्रणमइ पद पंकज नर वृन्दा ॥६॥ श्री 'कोरतिरतन सूरीश' तणी, शाखा मई अद्भुत देव मणी । वाचक 'लब्धिकल्लोल' गणी, दिन प्रति प्रतपउ जिम दिवस मणी ॥७॥ गणि 'विमलरंग' पाटइ छाजइ, अभिनव दिनकर जिम जगि राजइ । जसु नामइ अलिय विधन भाजइ, जसु अतिशय करि महियलि गाजइ। मन शुद्धई कीजइ गुरु सेवा, अति मीठी दीठी जिम मेवा । निज गुरु पद सेव करण हेवा, दिन प्रति वांछइ जिम गज-रेवा ॥६ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy