SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 381
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०४ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह श्री करमसी संथारा गीतम् । सदगुरु चरण नमी करी, गाइसु श्रीऋषिराइ । _ 'करमसीह' करणी करो, सांभलीयइ चित्तु लाइ ।। चित्तु लाइ संभलीयइ चरित, निज भावस्युं चारित लियउ। धन वंश 'कूकड़ चोपड़ा' नउ, सुयश प्रगट जिणइ कियउ ।। तप करी काया प्रथम शोधी, विगय षट् रस परिहरी। ___'करमसी' सुपरि कियउ संथारउ, सुगुरु चरण नमी करी ॥१॥ रीतइ गुरु कुल वास नी, मनि आणी संवेग। जाणी काया कारमी, करि निश्चल मन एक ।। मन एक निश्चल करी आपइ, अन्न समुंखइ परिहर्यउ । __ आहार त्रिविध त्रिविध संयोगइ गुरु मुखइ अणसण वर्यउ ।। आराधना करि संघ खामण, धरी विविध उल्हास नी। 'करमसी' तिणि विधि कियउ संथारउ, रीति गुरुकुल-वास नी ॥२॥ चड्यउ संथारइ तिणि परइ, जिणि विधि पूरब साधु । ___ करम भांजिवा सिंह हुवउ, भलइ 'करमसी' साधु ।। 'करमसी' साधु भलइ दीपायउ, गच्छ खरतर संघनइ । परभावना अम्मारि वरतो, उच्छव होई दिन दिनइ ॥ सिद्धान्त गीतारथ सुणावइ, साधु वेयावच करइ । धन कर्म करमट तिय खपावइ, चड्यउ संथारइ तिणि परइ ।।३।। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy