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________________ श्रीजिनसागर सूरि अवदात गीत २०१ ॥ जिनसागरसूरि अवदात गीत ॥ धूरउ पण्डित पूछीयउ रे, भामिणि आप सभावरे । जोसीड़ा । ' आखो टीपणो देखिने, मांडि लगन उपाय रे ।। १ ।। जो० "श्रीजिनसागरसूरिजी' रे, आज काल किण गाम रे । जो० । मो मन वांदण उमह्यो रे, सुणि अवदात नइ नाम रे । जो। _ 'श्रीजिनसागरसूरिजी रे लो० । आ० । "श्रीजिनकुशल' यतीश्वरइ रे लो, सुपन दिखाड्यो साच रे । जो० जन्म थकी यश विस्तर्यो रे, निकलंक काछ नइ वाच रे ।२। जो० राउल 'भीम' नरेसरइ रे लो, निरखी गुरु मुख नूर । जो०। __ केसर चन्दन चरची नइ रे, पामिसि पदवी पडूर रे । ३ । जो० उदय दिखाडयो 'अम्बिका' रे लो,श्री जिनशासन देव रे । जो० युगप्रधान 'जिनचन्दनी रे लो,करइ कृपा नित मेव रे । ४ । जो० मन मान्या वंछित फल्या रे, पूज्य पधार्या आप रे । जो०।। 'हर्षनन्दन' कहइ सर्वदा रे लो, वाधउ अधिक प्रताप रे । ५। जो० गाम नगर पुर विहरता पूजजी, 'श्रीजिनसागरसूरि'। कठिन क्रिया खप आदरो, पूजजी, पूहवि सुजस पडूरि ॥ १ ॥ पूजजी पधारउ सूरजी 'मेडतई' रे, श्रावक अति अविवेक । श्रावक चितारइ दिन प्रति चाह सुं, थापइ लाभ अनेक । श्रीसंघ श्रीसंघ वांदी हो, हरखित थाइस्यइ । आ० Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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