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२०२ . ऐतिहासिक जन काव्य-संग्रह खरतर गच्छ शोभा दीयउ, पूजजी बोहिथरे वरदान ।
साहिब 'मुकुरबखानजी,' पूजजी पग लागे द्यइ मान ।। २॥पू०॥ रूप कला पण्डित कला, पू० वचन कला गुण देख ।
राय राणी मानइ घणु, पूजजी थाइ माहे विशेष ॥ ३ ॥पु०॥ कामण मोहन नवि करो पू० लोक सहु वसि थाय ।
ए परमात्म प्रोछवउ, पू० पूर्व पुन्य पसाय ॥ ४ ॥पू०।। चित्त चाहतां आविया, पू० श्रीसंघ मानी वचन ।
रंग महोच्छव दिन प्रतइ, 'हरपनन्दन' कहइ धन ॥ ५ ॥पू०।।
॥ जाति फूलडानी॥ श्री संघ आज वधावणी, हिव आज अधिक उछरंगो रे ।
आचारज पद पामियउ, 'जिनसागरसूरि' सुचंगो रे ।। १ ॥श्री०॥ खरतरगच्छ उन्नति थइ, हिव कीधा अनुपम कामो रे।।
दुरजण मुहडा सामला, हिव साजण बाधी मामो रे ॥२॥श्री।। धन पिता 'वच्छराज' जो 'मृगा' पिण माता धनो रे।
वंश धन 'बोहिथरा', जिहां उत्तम पुत्र रतनो रे ॥ ३॥ श्री वाजा बाज्या रूयड़ा, वलि तान मान सन्मानो । । सूहव गावइ सोहलउ, तिहां याचक पामइ दानो रे ॥ ४ ॥ श्री० नयण सलूणा पूजजी, हिव हुं बलिहारी नामइ रे । __ मोहनगारा मानवी. हिव हरषनन्दन'सुख पामइ रे ।। ५ ।। श्री०
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