SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 374
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जिनसागर सूरि निर्वाण रास १६७ परिहरि सगला दोष, बितालीस आहार ना । मो० जिन धर्म एक आधार, टालि दुःख संसार ना ।। ३ ।। मो० ए संसार असार, स्वारथ नो सहुको सगो। मो०। अथिर कुटुम्ब परिवार, धर्म जागरिया तुम जगो ॥ ४ ॥ मो० अथिर छइ पुत्र कलत्र, अथिर माल घर परिग्रहो । मो० । अथिर विभव अधिकार, अथिर काया तिमि ए कहो ॥५।। मो० तुम्हें भावज्यो भावन बार, मन समाधि मांहि राखज्यो । मो० । अथिर मात नइ तात, अथिर शिष्यादिक नइ भाखज्यो ।। ६ ।। मो० जीवत हाथ मई जाइ, राखी को न सकइ सही । मो०। ___ जेहवो संध्या वान, तेहवी संपद ए कही ।। ७ ॥ मो० एकलो आवइ जीव, जाई एकलो प्राणियो। मो० । पुण्य पाप दोइ साथ, भगवंत एम बखाणियो ।। ८ । मो० बाल मरण करी जीव, ठामि ठामि हुओ दुखी ।मो०। पंडित मरण ए जागि, जिण थी जीव हुवइ सुखी राधामो० इम भावना एकांत भाव, अरिहन्त धर्म आराधता ।मो०। पुंहता सरग मझारि, आतम कारिज साधता ॥१०॥मो०॥ दोहा :--'सतर(इ) सइ उगणीस' मई, मास 'जेठ बदि तीज' । ___ 'शुक्र' 'सागरसूरि' जी, सरग ना पाम्या चीज ॥१॥ ढाल ६-काया कामिनी वी वइ रे लाल, एहनी । अवसर लाखीणो लहीरे, साह हाथी सर्व जाण ।मेरे पूजजी। महिमा मोटी इम करइ रे लाल, पूज्य तणइ निर्वाण ।। १ ।। यासइ रहि निजरावियारे, दिन 'इग्यारह' सीम । मे०।। सुंस सबद व्रत आखड़ी रे लाल, नाना विधि ना नीम ॥२॥मे० Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy