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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
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चोवा चंदन अरगजा रे, सहगुरु तणइ सरीर । मे० ।
करि अरचा पहिराविया रे लाल, पांभरी पाटू चीर ॥मे०॥३॥ देव विमान जिसी करो रे, मांडवो अति श्रीकार । मे०।
बाजे गाजे बाजते रे लाल, करि नीहरण विचार ।।मे०॥४॥ वयरचि सूकड़ि अगर सुं रे लाल, कस्तूरी घनसार । मे० । __ दहन दीइ घृत सींचता रे लाल, श्री पूज्य - तिणवार ।।मे।५।। जीव छुड़ावी (वे?)जुगति मुं रे, श्री संघ भेलो होइ । मे० ।
'गायां' 'पाडा' 'बाकरी' रे लाल, रूपइया शत 'दोई॥मे०॥६॥ 'शान्तिनाथ' नइ देहरइ रे लाल, वांदी देव विशेष । मे० । - वचन सांभलि वीतराग ना रे लाल, मंकी सोग अशेष मेलाणा (हाल ८) धन्याश्रो-कुंवर भलइ आविया एहनी । श्री 'जिनसागर सूरि जी ए, पाटि प्रभाकर तेम । सुगुरु भले गाइयइ, श्री जिनधर्म सुरीसरुए, जयवंता जग एम ॥१॥ देस प्रदेशे विहरता ए, भविक जीव प्रतिबोह । स०।
उदयवंत गच्छ जेहनो ए, महियल मोटो सोह ॥ स० ।। २॥ गुण गातां सगुरु तगा ए, पूज्यइ मन नी खांति । स०।
मन वंछित सहु ना फलि ए, भांजि मन नी भ्रांति ।। स० ॥ ३ ॥ संवत 'सतर वीसोत्तरई' ए, 'सुमतिवल्लभ' ए रास । स०। - 'श्रावणसुदि पुनम' दिनि ए, कीधो मनह उल्लास ॥ स० ।। ४ ।।
श्री 'जिनधर्म सुरीश' नो ए, माथि छै मुझ हाथ । स० । 'सुमतिवल्लभ' मुनि इम कहइ ए, 'सुमतिसमुद्र' शिष्य साथ ।स०५॥
॥ इति श्रीनिर्वाणरास संपूर्णम ॥ ( हमारे संग्रह में, तत्कालीन लि०)
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