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________________ anwar श्रीजिनसागर सूरि रास युगवर खरतर गच्छ धणीए, 'जिनचंद सूरि' गुरुराय ॥२०॥ शीस सिरोमणी अतिभलाए, 'धरमनिधान' उवझाय ॥६॥०॥ तास शीस अति रंगसु ए, 'धरमकीरति' गुण गाइ ।। व०॥ संवत 'सोलइक्यासीयइए, 'पोस वदि' 'पंचमि भाइ ॥१००।। 'श्री जिनसागरसूरि' नउ ए, रास रच्यु सुखकंद । व०॥ सुणतां नवनिध संपजइ ए, गातां परमाणंद ॥ १०१ ।। व०॥ तां प्रतपउ गुरु महियलइ, जां गगनइ दिनईस ।। व० ।। "धरमकीरति" गणि इम कहइ ए, पूरे सकल जगीस ॥१०२॥व० इति भट्टारक जिनसागर सूरिणाम् रास (बीकानेर स्टेट लायब्रेरीमें पत्र ४) श्रीजिनसागर सूरि सवैया धुरा देस मरुधरा शहर 'बीकाण' सदाइ, 'बोहिथ' हरे विरुद इत वसइ 'वछउ' वरदाइ। 'मृगा मांत' मोटिम्म, सुपन सूचित सुत सुन्दर, 'आठ' वर्ष अधिकार कला अभ्यास कुलोधर । वैराग जोग मां रमतइ, लखमी तजी कोडे लखे, सूरीस श्री 'जिनसागर' सुगुरु, उपम इसडे आरखे ॥१॥ युगप्रधान 'जिनसिंह' वंस 'चोपडा' विसेखइ, श्रावक 'अकबर' शाहि लीध धर्मलाभ अलेखइ । सइहथ तेण गुरु पासि, सुकृत करि माता संगइ, 'अमरसरई' ऊनति आए मनरंगि अगइ ।। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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