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________________ १८८ ऐतिहासिक जन काव्य-संग्रह नयर 'बीलाडई' चित धरी ए, चतुर करइ चउमास ।। व०॥ - उच्छव करइ 'कटारिआ' ए, पाखी पारण खास ।। व ।। ८८ ।। अनुक्रमि सदगुरु पांगुरइ ए, 'मेदनीतटह' निहाली ॥ २० ॥ 'रायमल' सुत जगि परिगडउए, 'गोलवछा' 'अमीपाल' ॥८६॥३॥ बंधव जेहनइ अति भलउए, वड वखती 'नेतसीह' ॥ व०॥ बहु परिवारइ दीपताए, भात्रीजउ 'राजसीह' । व० ।।१०।। सबली नदिइ आदर्यो ए, व्रत उच्चार सवेर ॥ व०॥ रूपइए लाहण करिए, तंबोलइ नालेर ॥ व०॥ ६१ ।। 'रेखाउत' वित्त वावरइ ए, 'सीरीमाल' 'वीरदास' ॥व० ॥ ___ 'माडण' 'तेजा' रंगसुं ए, 'रीहड' 'दरडा' खास ।। व० ।। ६२ ।। सुंदर गुरु सोहामणउ ए, भावइ कीजइ सेव ।। व० ॥ तिहाथी विहरी अनुक्रमि ए, वंद्या 'राणपुर' देव ॥ व० ।। ६३ ।। 'कुंभलमेरइ' जिन थुणी ए, 'मेवाडइ' गुणगांन ।। व०॥ ___ 'उदयपुर' नउ राजीयउ ए, राणउ 'करण' द्यइ मान ॥१४॥०।। 'लखमीचंद' सुत परगडाए, 'रामचंद' 'रघुनाथ' ।। व० ।। _ चित्त धरि वंदइ प्रहसमइए, 'अजाइबदे' सुत साथि ॥६५||व०॥ साधु विहारइ पग भरइ ए, 'सोनगिरई' अहिठाण ।। व० ॥ श्री संघ उच्छव नित करइ ए, अवशर नउ जे जाण ।।६।। 'साचार' संघ सहु मिली ए, आग्रह हे 'हाथिसाह' ॥ व० ॥ । चउमासइ गुरु राखीयाए, 'जिनसागर' गजगाह ।। ६७ ।। व० ।। वर्तमान गच्छराजजी ए, 'जिनसागर सूरि' सुखकार ॥०॥ 'श्री जिनसागर' चिरजयउए, आचारिज पद धार ॥६८॥व०॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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