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________________ श्रीजिनसागर सूरि रास १८७ बीकानयर वंदीइ पहुंचइ, 'श्रीजिनसागर सूरि'। ___ 'पासणीए' करयु पइसारउ, रंगइ बहुत पडूरि ॥८॥ राग:-सामेरी पासाणी बहु वित बावइ, पइसारउ साम्ही आवइ । __'सोलह सिणगारे' सारी, सिरि(श्री?) कलश धरि बहु नारी ॥८१।। सिरि 'भागचंद' सुत आवइ, 'मणुहरदास' निज दावइ । वलि संघ सहगुरु वंदइ, श्रीखरतरगच्छ चिरनंदइ ।।८२॥ तिहां वाजइ ढोल नीसाण, संख झालरनउ मंडाण । बहु उछवि वसतइ आयां, श्रीसंघ तणइ मनिभाया ॥८॥ सुहव मिली निउंछण कीजइ, निज जन्म तणउ फल लीजई। तंबोल भली पर दीधा, मन वंछिन कारिज सीधा ॥८४|| . राग :-धन्याश्री 'विक्रमपुर' थी संचरी ए, 'सर' मांहि करिअ चउमास । दिन दिन रंग वधामणाए पूरइ मननीआस ॥०॥ वधावउ सदगुरु ए, जिनसागरसूरि'वधावउ ।आखरतरगच्छपडूराव०॥ तिहां श्री गइ आवियाए, 'जालयसर' सुखवास ।व०। उच्छव सुगुरु वांदिआए, मंत्री 'भगवंत दास ॥८५॥०॥ विचरिय तिहां थी भावसु ए, 'डीडवाणउ' वंदावि ।। व०॥ 'सुरपुर' संघ सुहामणउ, भेटइ बहुलइ भावि । व०॥८६॥ 'मालपुरई' महिमा थइ ए, लोधउ लाभ विशेष ॥ व०॥ श्री संघ वंदइ. चाह सुं, प्रहसमि नयणे पेखि ।। व०॥८७॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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