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________________ १८६ ऐतिहासिक जैन काव्य-संग्रह संवत 'सोल चउहत्तरि' वरसइ, 'फागुण सुदि' 'सनिवार' । शुभ वेला सुभ महूरत जोगइ, 'सातमि' दिवस अपार ।। संघ सहु हरखित थइ वंदइ, धइ बहुलउ बहुमान । 'आसकरण' संघवी तिण अवसरि, आपइ वांछित दान ॥७५|| भट्टारक 'जिनराजसूरि', वर्तमान गणधार । पाटइ 'जिनसागर' वरू, आचारिज अधिकार ।।७।। ढाल :-तेहिज विहिरिअ 'राणपुरई' 'वरकाणइ', 'तिमिरि' भेट्या पास । ____ 'ओइस' 'घंघाणी' यात्र करीनइ, 'मेडतई' करिअ चउमास । तिहाथी उच्छव कीध 'जेसाणइ', 'भणसाली' 'जीवराज' । 'राउल' 'कल्याण' सुं श्री संघ वंदइ, सीधा सगला काज ।।७७॥ अमृत वाणि सुणइ तिहां श्रीसंघ, बंच्या इग्यारह अंग । मिश्री सहित रुपइआ लाहइ, साह 'कुसला' मन रंग ।। लद्रुपुरइ पाउधारइ सदगुरु, श्रीसंघ साथइ आवइ । साहमोक्छल कग्इ साह 'थाहरु', 'श्रीमल' सुत वित्त वावइ ॥७८।। तिहाथी विहार करि 'जिनसागर', आचारज हितकार । ___ 'फलवद्धीयइ' आवइ ततखिण, थावइ बहुअ प्रकार ॥ उलट धरिअ तिहां कणि वांदइ, श्रीसंघ द्यइ बहुमान । पइसारउ करि 'झाबक' 'मानइ', दीधउ याचक दान ॥७६।। श्रीखरतर गच्छ सोह चडावइ, तिहाथी करिअ विहार । 'करणुंअइ' आया बहु रंगइ, संघ वंदइ गणधार । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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