SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 362
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जिनसागरसूरि रास · १८५ अवसर जाणी तिण समइ, श्रीसंघ कहइ विचारि । __ बोलइ सदगुरु चित धरी, वड वखती सिरदार ॥६८॥ अणशग आराधन करी, पहुंता गुरु सुर लोग। वाजिब बाजइ तिहां घणा, मांडवी तणइ संजोगि ॥६६॥ सोग निवारी थापीया, सखर महुरत लीध । भट्टारक गुरु 'राजसी', 'सामल' आचारज कीध । ७०॥ 'आसकरण' 'अमीपाल' वलि, 'कपूरचन्द' सुविलास । पद ठवणउ करइ रंग सुं, 'ऋषभदास' 'सूरदास' ॥७॥ राग:-आसावरी तब सिणगार्या पोलि पगारा, तंबू उंचा खचीयां । मस्तक उपरि मोती झुबइ,वहींचइ भारइ लचीयां ।। तेह तलइ बइठा बहु लोग, भूमि भाग नहिं माग। एक एक नइ वेल्हइ मेल्हइ, तिल पडिवा नहीं लाग ॥७२।। सबली नांदि मंडाइ तिहां कणि, वाजिव विविध प्रकार । सूरी मंत्र आप्यउ तिण अवसरि, 'हेमसूरि' गणधार ।। श्री 'जिनराज' सूरिश्वर नामइ, साधु तणा सिणगार । बालपणइ सूरि पद आपी, सुंप्यउ गच्छ नउ भार ॥ ७३ ।। तेहिज नांदि आचारिज पदवी, 'श्री जिनराज' समोपइ । : मन सुद्धइ सूरि मंत्र ज देइ, 'जिनसागर सूरि' थापइ । सजि सिणगारने कामिणी आवइ, भरि भरि मोतिन थल ।। सोवन फूलि बधावइ सदगुरु, गावइ गीत धमाल ।। ७४ ।। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy