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________________ १८४ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह 'वदह' विद्या तण निहाण, सद्गुरु उत्तम करइ वखाण । उदयवंत अवसर नउ जाण, निज गुरु तणइ जे मानइ आण || ५८ ॥ खमावंत मांहे पहली लीह, सोहइ गुरु पासइ निसदीह । दस विध जातीधरम नउ धणी, तप जप संयम करुणा घणी ॥५६॥ यात्र करी 'सैत्रुज' तणी, साथइ 'जिनसिंह सूरि' दिनमणी । संघवी 'आसकरण' विख्यात, संघ करावी कारिअ जात ||६०|| 'खंभात' नइ 'अमदाबाद', 'पाटण' मांहि घणउ जसवाद । 'वडली' वंदया 'जिनदत्तसूरि', भेट्या पातक जायइ दूर ||६१ || इणि अनुक्रम 'जिनसिंह सूरि', 'सीरोहीयइ' गुरु सबल पडूरि । करिअ पइसारौ वंदइ संघ, राजा मान दियइ 'राजसिंह' ||६२ || 'जालउरइ' आवइ गच्छराज, वाजित्र बाजइ बहुत दिवाज । श्रीसंघ सुं वंदइ कामिनी, रूपइ जीति सुर भामिनी ॥ ६३ ॥ 'खंडप' नई 'द्र णाडा हेव, 'धंघाणी' भेटया बहु देव । अनुक्रम मन मइ धरिअ ऊलासि, आव्या 'बीकानेर' चउमासि ||६४॥ 'वाघम' पइसारो करइ, नीसाणइ अंबर थरहरइ | कीधा नेजां पोलि पागार, वसति आयां श्रीगणधार ||६५ || आनन्दइ चउमासउ करी (इ), आया 'मेवडा' बहु हित धरी । तेडावर श्रीशाहि 'सलेम', 'मेडता' आया कुसले खेम ||६६|| # राग:- वैराडी तिणि अवसर 'जिणसिंह' नउ, परवसि थयउ सरीर । देवगतइ छूटा नही, पुरष बडा बहु मीर ||६७ || दूहा Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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