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जिनसागर सूरि रास संवत 'सोल इकसठइ' 'माह' मासि सुभ मासि ।
मात सहित दिक्षा लीयइ, पहुती मन नी आसि ॥४८॥ तिहाथी चारित लेइ नइ, सदगुरु साथि विहार ।।
विद्या सीखइ अति घणी, धरता हर्ष अपार ॥४६॥ अनुक्रमि देस वंदावतां, आया 'जिनसिंह' राया।
_ 'राजनगर' 'जिनचंद' ने, लागइ जुगवर पाया ॥५०॥ पांच समिती तीन गुप्ति जे, पालइ प्रवचन मात ।
छ जीवनी रक्षा करइ, न कर इ पर नी ताति ॥५१।। सामाचारि सूत्र अरथ, जाणइ सरव प्रकार।।
_ 'सतावीस' गुणे करी, सोहइ 'सामल' सार ॥५२॥ तप वहा मांडलि तणा, वड दिखा तिहां दीध ।
'श्रीजिनचंद्र सूरि' सइंहथइ, 'सिद्धसेन' मुनि कीध ॥५३।। बूहा उपधान उलटइ, आगम ना वलि जोग ।
'छ मासी' 'विक्रमपुरई' सरिया सकल संयोग ॥५४॥ सुगुरु भणावइ चाह सुं, उत्तम वचन विलास ।
युगप्रधान बहु हित धरइ, पहुंचइ वंछित आस ।।५।। चउपइ :-पभणइ शास्त्र सिद्धांत विचार,मुणिवर सिद्धसेन सिरदा र
गुरु नउ विनय साचवइ भलउ, 'सिद्धसेन' विद्या गुण निलउ ॥५६।। 'अंग इग्यारह' 'बार-उपंग', 'पयन्ना-दस भणइ मन चंग। 'छ छेद' ग्रन्थ मूल सूत्रह 'च्यारि',
'नन्दी', अनइ 'अनुयोगदुआर' ॥५॥
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