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________________ १८२ ऐतिहासिक जेन काव्य संग्रह ढाल :-केदारा गौडी सांभली वचन सहगुरु केरा, जोवादिक नवतत्व भलेरा । उपशम रस ध(भ?)र कायकलेसी, संजम सेवा बुद्धि निवेसी ॥३८॥ मात पासे जइ कुमर सोभागी, पभणइ संजमि लीउ मनरागी। अनुमति मोहि दीयउ मोरी माइ, नवि कोजइ चारित्र अंतराइ ॥३६॥ मात भणइ वछ सांभलि साचुं, इण वचनइ पुत्र हुँ नवि राचुं । लोह चणा मयण दांति चबायइ, तेहथी संजम कठिन कहायइ ।।४०॥ कुमर भणइ माता किं सूरे परचारइ, कायर हुइ ते हीयडुं हारइ । संजम लेवा बात कहेवी, मइ पिण निश्चइ दिक्षा लेवी ।। ४१ ॥ राग:-देसाख । दोहा :-बडभाइ 'बिक्रम' सहित, 'मात' भणइ मु(तु?)झसाथि । ____ करिसुं आत्माराधना, 'जिनसिंह सूरि' गुरु हाथि ॥४२॥ दूध मांहि साकर मिली, पीतां आणंद होइ। वचन सुणि निज मातना, हरखउ कुमर मनि सोइ ॥४३॥ 'विक्रमपुर' थी अनुकमइ, सदगुरु करइ (अ) विहार । 'अमरसरई' पउधारिया, 'श्रीजिनसिंह' उदार ॥४४॥ सामाइक पोसउ करइ, पडिकमणउ गुरु पासि । संजम लेवा कारणइ, कुमर मनइ उलासि ॥४५॥ श्री अमरसर' संघ तिही, हरखित थयउ अपार । वाजिन बाजइ नवनवा, वरनउलां सुप्रकार ।।४६।। 'श्रीमाल' वंशि सुहामणउ, 'थानसिंह' थिर चित्त । संजम उछव कारणइ, खरचइ तिहां बहु वित्त ॥४७॥ ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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