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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
संग्रह्यो साधु मारग सरस, पूरण गुण पूरण पखे,
सूरीस श्री 'जिनसागर' सुगुरु, उपम इसडे आरखे ॥२॥ विनय विवेक विचार वाणि सरसती विराजइ,
'विद्या चवद' निधान, सुजस जगि वाजा वाजइ । विषम वाणि विषवाद, विषयरस अंगि न बाधइ,
वखतवंत वर विबुध वान दिन प्रति वाधइ ।। वाजणी थाट वादी विषइ, परि परि पूगउ पारखे ।
सूरीस श्री 'जिनसागर' सुगुरु, उपम इसडे आरखे ॥३॥ उछव रंग बधाइ दिवावत, सुंदर मंगल गीत सुहावत, मोतीन थाल विसाल भरि भरि, भामिनी भावसं आपि बधावत । गच्छ नायक लायक लाख गुणी, गुण गावत वंछित ते फल पावत । श्री 'जिनसागरसुरि' वइरागर, नागर रंगि देख्यउ गुरुआवत ॥४॥ प्रगट सोभाग साग विकट वइराग माग,
राग हुं कउ लाग दोष दूरि होर हीयउ हइ । ततु तुम दृढ़धार अमृत ज्ञान आहार
___ कठिन क्रिया प्रकार काम जु वहीयउहइ । ललित ललाट नूर, तपति प्रताप सूर,
'सागर' सुरिंद गुरु गौतम कहायउ हइ ।।५।। सवाया छइ ( उपरोक्त बिकानेर स्टेट लायब्रेरी की
प्रति में, तत्कालीन लि०)
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