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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
नगर मांहि बहुला व्यवहारी (व्यापारी), दानशील तप भावि उदारी। वसइ तिहां पुण्यइ बहु वित, साह 'वछा' नामइ थिर चित्त ॥१६॥
राग :-रामगिरी। दोहा-रयणी सोहइ चंद से, दिनकर सोहइ दीस ।
तिम 'वछा' 'बोहिथ' कुलइ, पूरउ मनह जगीस ॥२०॥
___ ढाल:-पाछली तासु घरणि 'मिरगा दे' सती, रूपइ रंभा नु जीपति । 'चउसठि' कला तणी जे जाण, मुखि बोलइ सा अमृत वाणि ॥२१॥ प्रिय सुं प्रेम धरइ मनि घणउ, 'दसरथ' सुत जिम 'सीता' सुणउ । चंद्र चकोर मनइ जिम प्रीति, पालइ पतिव्रत धरम नी रीति ॥२२॥ पांचे इंद्री विषय संयोग, नित नित नवला वहुविध भोग । नव यौवन काया मद मची, इंद्र संघातइ जाणे सची ॥२३॥
रागः- आसावरी दहा-सुखभरि सूती सुंदरि, पेखि सुपन मध राति ।
___ रगत चोल रत्नावली, प्रिउ नै कहइ ए बात ॥ २४ ॥ सुणी बचन निज नारि ना, मेघ घटा जिम मोर ।
हरख भणइ सुत ताहरइ, थासइ चतुर चकोर ।।२५।। हाल-आस फली माइडी मन मोरी, कूखइ कुमर निधान रे। ___ मनवंछित डोहलां सवि पूरइ, पामइ अधिकउ मान रे ।२६।आ०। संवत 'सोल बावन्ना' वरषई, 'काती सुदो' 'रविवार' रे। 'वउदसि'ने दिनि असिणि रिखइ(नक्षत्रइ?),जनम थयो सुखकार।।२७.
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