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________________ श्रीजिनसागरसूरि रास १७६ श्री 'अकबर' प्रतिबोधीयो, वचने अमृत धार । श्री 'खरतर' गच्छराज नी, कीरति समुद्राँ पार ।। ६॥ 'युगप्रधान' पद आपीयो, 'अकबर' साहि सुजाण । निज हाथि श्री 'जिनसिंह' नइ, पदवो दीध प्रधान ॥१०॥ तिण अवसर बहु भाव सुं, देइ 'सवा कोडि' दान । 'वच्छावत' वित वावरइ, 'कर्मचंद' मंत्रि प्रधान ॥११॥ युगवर 'जंबू' जेहवउ, रूपइ 'वार-कुमार'। __ 'पंच नदी' साधी जिणइ, शुभ लगन शुभ वार ॥१२॥ संवत 'सोल गुणहत्तरई', बूझवि साहि 'सलेम' । 'जिनशासनि मुगतउ' कर्यो, 'खरतर' गच्छ मइ खेम ।१३। तासु पाटि 'जिनसिंह' गुरु, तासु शीस सिरताज । _ 'राजसमुद्र' 'सिद्धसेनजो', दरसणि सीझइ काज ॥१४॥ युगवर श्री 'जिनसिंह' नइ, पाटइ श्री 'जिनराज'। _ 'जिनसागरसूरि' पाटवी, आचारिज तसु काज ॥१५॥ कवण पिता कुण मात तसु, जनम नगर अभिहाण । कुण नगरइ पद थापना, 'धरमकीरति' कहइ वाणि ।।१६।। ढाल:- तिमरीरह 'जंबू' दीपह थाल समाण, 'लख जोयण जेहनो परिमाण । 'दक्षिण' 'भरतई' आरिज देस, 'मरुधरि' 'जंगलि' देस निवेस ॥१७॥ तिहां कणि राजइ 'रायसिंघ' राज, 'बीकानयर' वसइ शुभकाज । ठाम ठाम सोहइ हट सेरी, वाजिन वाजइ गावइ गोरी ॥१८॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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