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श्रोजिनराज सूरि रास
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दोहा :-उष्णोदक सुं कुमर नइ, भलउ करायउ स्नान ।
अङ्गि शृङ्गार कीया सहु, वणियउ वेष प्रधान ॥१॥ वेलि:-हिव वणियउ वेश प्रधान, गंगोदक सुं कीया स्नांन ।
मोतीयडे कुमर बधायउ, आभरणे अंग बणायउ ।। १ ॥ मस्तकि भलउ मुकुट विराजइ, दोइ कानइ कुण्डल छाजइ । बिहुं बांहे बहरखा खंध, करि सोहइ बाजूबन्ध ।।२।। उर वर मोतिन कउ हार, पाइ घुघरिया घमकार अश्व उपरि थयउ असवार, याचक करइ जयजयकार ॥३॥ ताजां नेजां गयणइ सोहइ, वरनोलइ इम मनमोहइ।
........."||४|| दोहा:-हिव गुरु पासइ आवियइ, मिलीया माणस थाट।
कुमर तणउ जस उचरइ, 'चारण' 'भोजिग' 'भाट' ।।१।। वेलि:-हिव 'चारण' 'भोजिगभाट',"धरमसी'शाह करइ गहगाट
"खेतसी" गुरु पायइ लागइ, गुरु वांदी बइठउ आगइ ॥१॥ इम पभणइ “धरमसी” शाह, ए कुमर बडउ गज गाह । पूजजी हिव कृपा करोजइ, ए माहरि थापण लीजइ ॥२॥ हिव कुमर सुणे बालूड़ा, ले दिक्षा चलिजे रूड़ा। गुरुजीनो कह्यो करेजो, सूधउ संजम. पालेजो॥ ३ ॥ जिम दीपइ 'बोहिथ' वंश, तिम करिजो सुत अवतंश। क्रोधादिक वयरी दाटे, महियली बहुलउ जस खाटे ॥ ४ ॥ तुजनइ किसी सीख सीखांवा, स्युं दांत नइ जीभ भलावां । जिम सहुको कहइ धन धन्न, तिम करिज्यो पुत्र रतन्न ॥५॥
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