________________
१६४
ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
दोहा :-वचन एहवउ सांभलि, इणि परि कहइ कुमार। ___ कायर कापुरिसां भणी, दुहिलउ संजम भार ॥ १॥ वेलि:-माता दुहिलउ संजम भार, जे कायर हवइ नर-नारि - जो सूर वीर सरदार, तिणनइ स्यु दुक्करकार ।। १ ।। गाथा:-ता(उ)तूं गोमेरुगिरी,मयरहरो(सायरो)तावहोइदुत्तारो।
ता विसमा कजगइ, जाव न धीरा पवज्जति ॥ १॥ वेलि:-जे कुल ना जाया होवइ, ते कुलवटि साम्हउ जोवइ ।'
तिण कारण ढील न कीजइ, माताजी अनुमति दीजइ ॥२॥ दोहा:-संजम उपर जाणियउ, सुत नउ निवड सनेह ।।
हिव जिम जांणो तिम करउ, दोधी अनुमति एह ॥ १॥ वेलि :--हिव दीधी अनुमति एह, संयम सुं निवड सनेह ।।
दिक्षा नउ उच्छव कीजइ, मुंह मांग्या धन खरचीजइ ।।१।। धरि रङ्ग 'धरमसी' शाह, इम उच्छव करइ उच्छाह ।
धरि मंगल वाजिन वाजइ, तिणि नादइ अम्बर गाजइ ॥२॥ बाजइ भुंगल नइ भेरी, बाजइ नवरंग नफेरी ।
___ बाजइ ढोल दमामा ताली, गुण गावइ अबलाबाली ॥३॥ बाजइ सुन्दर सरणाइ, सुणतां श्रवणे सुखदाइ ।
बाजइ झलरि ना झणकार, पड़इ मादल ना दोंकार ॥४॥ बाजइ राय गिडगिडी रंग, विध विध बाजइ मुख चंग।
गन्धर्व बजावइ वीणा, सुणइ लोक सहु तिहां लीणा ||५|| बाजइ त्रिवली ताल कंसाल, गीत गावइ बाल-गोपाल - आलापइ राग छत्तीस, इम उच्छ (व) थाय जगीस ।।६।।
Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org