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श्रीजिनराज सूरि रास गंगोदक सुं छांटिनइ, बींझ्या शीतल वाय ।
सावधान हुइ तदा, इणि परि जम्पइ माय ॥२॥ तुं नान्हडियउ माहरइ, तुं मुझ जीवनप्राण ।
एक घड़ी पिण दिन समी, तोरइ विरह सुजाण ।। ३ ।। तुं सुकमाल सोहामण3, दोहिलउ संजम भार ।
बोल विचारी बोलियइ, संजम दुक्करकार ॥ ४ ॥ तन धन यौवन लही करी, विलसउ नवनव भोग ।
वलि वलि लहतां दोहिला, एहवा भोग संजोग ।।५।। वेलि (९):-लही एहवा भोज संजोग, विलसीजइ नवनवभोग । तुं “वोहिथरा" कुल दीवउ, तिणि कोडि वरस चिरजीवउ ॥१॥
सुत तुं सुकमाल सदाइ, तुं सिगलानइ सुखदाइ । जिणवर भासित ले दोक्षा, तुं किणी परि मांगिसी भिक्षा ॥२॥ तु पंडित चतुर सुजाण, तुं बोलइ अमृत-वाणि ।
तुज गुण गावइ सहु कोइ, तुज सरिखउ पुरिस न कोइ ॥३॥ दोहा :-सांमलतां पिण दोहिली, सुत संजमनी बात ।
श्रावक धरम समाचरउ, तुं सुकमाल सुगात ॥ १।। वेलिं:-सुत तुं सुकमाल सुगात, मत कहिजो संजम बात ।
इणि गरुअइ संजम भारइ, विचरेवउ खइडां धारइ ॥१॥ बहुला मुनिवर आगेइ, चूका छइ चारित लेइ ।। तिणी बात इसी मत कहिजो, डोकरपणि चारित लेज्यो ।।२।। इणि जोवनवय तु आयउ, तुं नन्दन पुण्यइ पायउ । घणा दुखित दीन सधारउ, 'बोहिथ कुल' वान वधारउ ॥३॥
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