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________________ श्रीजिनराज सूरि रास १६१ बत्रीस लाख विमान नउ जी, साहिब छइ जे इन्द्र । ते पणि श्रावक कुल सदा, वंछइ धरि आणंद ॥६॥भविक०॥ वरजीजइ श्रावक कुलईजी, अनंतकाय बत्रीस । मधु माखण वरजइ सदाजी, तिम अभक्ष बावीस ॥णाभविक०। सामायिक ले टालयइजी, त्रीस अनइ दुइ दोष । __ परनिंदा नवि कीजियइजी, मन धरियइ संतोष ॥८||भविक०॥ इक दिन दिक्षा पालीयइजी, आणी भाव प्रधान । तउ सिवपुर ना सुख लहइजी, निश्चय देव विमान पामविक०॥ इणि जगि सरब अशाश्वतोजी, स्वारथ नउ सहु कोय । निज स्वारथ अणपूजतइजी, सुत फिरी वयरी होय ॥१०॥भविक०॥ चिंतामणी सुरतरू समउजी, जिनवर भाषित धर्म । __ जउ मन शुद्धई कीजियइजी, तउ त्रूटइ सही कर्म ॥११॥भविक०॥ दोहा:-खेतसी कुमरई संभल्यउ, जिनसिंह सूरि बखाण । वाणी मनमांहे वसी, मिठ्ठो अमिय समाण ॥१॥ करजोड़ी एहवउ कहइ, आणि हरख अपार । तुम्ह उपदेशइ जाणियउ, मइ संसार असार ॥२॥ तिणि कारण मुझनइ हिवइ, दीजइ संजमभार । ___ कृपा करि मो उपरइ, इणि भविथी निस्तार ॥३॥ वलतउ गुरु इणि परि कहइ, मकरउ ए प्रतिबंध । मात पिता पूछउ जइ, करउ धरम सम्बन्ध ॥४॥ ढाल आठमी:-मांहके देह रंगीली चूनरी–इणजाति । अहो गुरु वांदी नइ उठियउ, आव्यउ माता नइ पास हो। • कर जोडिनइ इणि परि कहइ, आणी मन मांहि उलास हो ॥१॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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