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________________ १६० ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह सुविहत साधु तणइ परिवारई, दे उपदेश भविक निस्तारई । विचरइ महियल उप विहारइ, आप तरइ लोकां नइ तारइ ॥१२॥ हुवइ सबल तिहां पइसारइ, जिनशासनि रो वान बधारइ । कलिकालइ गौतम अवतारइ, पूजजी 'बीकानयर' पधारइ ॥१३॥ हरखित हुआ सहूको लोक, जिम रवि दंसणि थायइ कोक । बड़ा बड़ा श्रावक सुणइ अशेष, पूजजी एहवउ द्यइ उपदेश ॥१४॥ दोहा :-ए सायर गाजइ भलउ, अथवा गाजइ मेह । वाणी सांभलतां थकां, एहवउ थयउ संदेह ॥१॥ पोषइ 'नव रस' परगड़ा, करइ 'राग छतीस' । ___ सरस वखाण सुणी करो, सह को धइ आसीस ॥२॥ ढाल सातमी :-मेघमुनि कांइ डमडोलइरे । इणजाति । सहको श्रावक सांभलइजी, लोक सुणइ लख गान । “खेतसी" कुमर पधारियाजी, इणपरि सुणइ वखाण ॥१॥ भविकजन धरम सखाइ रे, जीवनइ सुखदाइ रे । कीजइ चित्त लाइ रे, भविकजन धरम सखाइ रे ॥आँकणी०॥ सदगुरुनी संगति लहीजी, लाधौ आरिज खेत । मानव भव लाधउ भलउजी, चेत सकइ तउ चेत ॥२॥ भविक०॥ इण जगि सरव अश्वाशतउजी, हीयइ बिचारी जोय । इम जांणिरे प्राणियाजी, ममता मां करउ कोय ॥३॥भविक०॥ माया मोह्या मानवीजी, धन संचइ दिन राति । वयरी जम पूठइ वहइंजी, जीव न जाणइ घात ॥४॥भविक०॥ दश दृष्टंते दोहिलउजी, लाधउ नर भव सार । तिहां पणि पुण्यइ पामियईजी, उत्तम कुल अवतार ॥५||भविक०॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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