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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह सुविहत साधु तणइ परिवारई, दे उपदेश भविक निस्तारई ।
विचरइ महियल उप विहारइ, आप तरइ लोकां नइ तारइ ॥१२॥ हुवइ सबल तिहां पइसारइ, जिनशासनि रो वान बधारइ ।
कलिकालइ गौतम अवतारइ, पूजजी 'बीकानयर' पधारइ ॥१३॥ हरखित हुआ सहूको लोक, जिम रवि दंसणि थायइ कोक ।
बड़ा बड़ा श्रावक सुणइ अशेष, पूजजी एहवउ द्यइ उपदेश ॥१४॥ दोहा :-ए सायर गाजइ भलउ, अथवा गाजइ मेह ।
वाणी सांभलतां थकां, एहवउ थयउ संदेह ॥१॥ पोषइ 'नव रस' परगड़ा, करइ 'राग छतीस' ।
___ सरस वखाण सुणी करो, सह को धइ आसीस ॥२॥ ढाल सातमी :-मेघमुनि कांइ डमडोलइरे । इणजाति । सहको श्रावक सांभलइजी, लोक सुणइ लख गान ।
“खेतसी" कुमर पधारियाजी, इणपरि सुणइ वखाण ॥१॥ भविकजन धरम सखाइ रे, जीवनइ सुखदाइ रे ।
कीजइ चित्त लाइ रे, भविकजन धरम सखाइ रे ॥आँकणी०॥ सदगुरुनी संगति लहीजी, लाधौ आरिज खेत ।
मानव भव लाधउ भलउजी, चेत सकइ तउ चेत ॥२॥ भविक०॥ इण जगि सरव अश्वाशतउजी, हीयइ बिचारी जोय ।
इम जांणिरे प्राणियाजी, ममता मां करउ कोय ॥३॥भविक०॥ माया मोह्या मानवीजी, धन संचइ दिन राति ।
वयरी जम पूठइ वहइंजी, जीव न जाणइ घात ॥४॥भविक०॥ दश दृष्टंते दोहिलउजी, लाधउ नर भव सार । तिहां पणि पुण्यइ पामियईजी, उत्तम कुल अवतार ॥५||भविक०॥
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