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श्रीजिनराज सूरि रास ढाल संधिनी छटो-पणमिय पास जिणेसर केरा। इणजाति। कुमर हिवइ जोवन वय आयउ, दिन दिन दिपइ तेज सवायउ । गरुअउ यश तिहुभवणे गायउ, धन धन ,धारलदे' उ(द)र जायउ ।।१।। सूरिज जिम तेजइ करि सोहइ, मेह तणी परि महियल मोहइ। 'क्रिसण' तणो पर सूर सदाइ, दानइ 'करण' थकी अधिकाइ ॥२॥
रूपइ 'मनमथ नउ मद गाल्यउ, काम क्रोध विषयारस टाल्यउ ॥३॥ सायर जिम सोहइ गंभीर, मेरु महीधर नी परि धीर ।
कल्पवृक्ष जिम इच्छा पूरइ, चिंतामणी जिम चिंता चूरइ ॥४॥ 'विक्रमादित्य' जिसउ उपगारी, अहनिसि सेवक नइ सुखकारी ।
पांच 'पंडव' जिम बलवंत, सीह तणी परि साहसवंत ।।५।। नयन कमल नी परि अणियाली, सोहइ अधर जाणइ परवाली।
करइ हाथ सुं लटका मटका, बोलइ वचन अमी रा गटका ।।६।। काया सोहइ कंचण वरणी, सोहइ हाथे सखर समरणी।
लखतवंतो मोहण बेलि, हंस हरावइ गजगेतिगेली ॥णा मस्तक सुंदर तिलक विराजइ, दरसण दीठा भावठि भाजइ ।
पहिरइ नित २ नवरं वागउ, तेगदार मांहे अधिकउ तागउ ॥८॥ रायराणा सहुको द्यइ मान, धरमध्यान करिवा सावधान ।
न करइ परनिन्दा परघात, केहा केहा कहूं अवदात ॥६॥ देखि दिन दिन अधिक प्रतापइं, वाकां वयरी थरथर कांपइ।
महीयलि सिगले बोलइ पूरउ, इणपरि विचरइ कुमर सनूरउ ॥१०॥ हिव इणि अवसर श्री 'बीकाणई', 'अकवर' जेहनइ आप वखाणइ । खरतरगच्छ मांहे प्रबल पडूर, आव्या गुरु 'श्रीजिनसिंह'सूर।।११।।
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