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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह मणमणा बोलइ बोल अमोल, पहिरयउ वागो रातउ चोल ।
अंगि शृङ्गार करावइ सोल, माता सूइम करइ रंगरोल ॥१०॥ फेरइ चकरडी माता प्रेरइ, बालूडा बलिहारी तेरइ ।
बंगू लट्ट फेरइ चंगा, हाथइ गोटा ल्यइ पंचरंगा ॥११॥ उंचउ उपाडइ ले बांहडियां, माता कहइ आउ मेरा नान्हडियां ।
हाथे घालइ सोवन कडियां, गूंथी द्यइ फलनी दडियां ॥१२॥ मइ सोलही पासा सारई, रमइ पंचेटे विविध प्रकारइ ।
बीजा बालक सहको हारइ, जीपइ कुमर भाग्य अणुसारइ ॥१३।। इम उच्छव सुं नव-नव केलइ, 'धारलदे' रउ धोटउ खेलइ ।
रूपइ मयण तणउ अवतार, सात वरस नउ थयउ कुमार ॥१४॥ बुद्धई वीजउ वयर (अभय?) कुमार, आवइ सहु सुणियउ इक वार ।
मात पिता चिंतइ उल्हासइ, कुमर भणावउ पंडित पासइ ॥१५॥ दूहा:-पुत्र भणइवा मांडियइ, पण्डित गुरुनइ पाय।
विद्याआवी तेहनइ, सरसति मात पसाय ।। १॥ भली परइ आवी भले, सिद्धो अनइ समान ।
"चाणाइक" आवइ भला, नीतिशास्त्र असमान ॥२॥ तेह कला कोइ नहीं, शास्त्र नहीं वलि तेह ।
विद्या ते दीसइ नहीं, कुमर नइ नावइ जेह ॥ ३ ॥ कला 'बहुत्तरि' पुरषनी, जाणइ राग 'छतीस' ।
कला देखि सहु को कहइ, जीवो कोडिवरीस ॥४॥ "षड़ भाषा" भाषइ भली, “चवदह विद्या" लाध ।
लिखइ 'अठारह लिपी' सदा, सिगले गुणे अगाध ।। ५॥
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