SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 335
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५८ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह मणमणा बोलइ बोल अमोल, पहिरयउ वागो रातउ चोल । अंगि शृङ्गार करावइ सोल, माता सूइम करइ रंगरोल ॥१०॥ फेरइ चकरडी माता प्रेरइ, बालूडा बलिहारी तेरइ । बंगू लट्ट फेरइ चंगा, हाथइ गोटा ल्यइ पंचरंगा ॥११॥ उंचउ उपाडइ ले बांहडियां, माता कहइ आउ मेरा नान्हडियां । हाथे घालइ सोवन कडियां, गूंथी द्यइ फलनी दडियां ॥१२॥ मइ सोलही पासा सारई, रमइ पंचेटे विविध प्रकारइ । बीजा बालक सहको हारइ, जीपइ कुमर भाग्य अणुसारइ ॥१३।। इम उच्छव सुं नव-नव केलइ, 'धारलदे' रउ धोटउ खेलइ । रूपइ मयण तणउ अवतार, सात वरस नउ थयउ कुमार ॥१४॥ बुद्धई वीजउ वयर (अभय?) कुमार, आवइ सहु सुणियउ इक वार । मात पिता चिंतइ उल्हासइ, कुमर भणावउ पंडित पासइ ॥१५॥ दूहा:-पुत्र भणइवा मांडियइ, पण्डित गुरुनइ पाय। विद्याआवी तेहनइ, सरसति मात पसाय ।। १॥ भली परइ आवी भले, सिद्धो अनइ समान । "चाणाइक" आवइ भला, नीतिशास्त्र असमान ॥२॥ तेह कला कोइ नहीं, शास्त्र नहीं वलि तेह । विद्या ते दीसइ नहीं, कुमर नइ नावइ जेह ॥ ३ ॥ कला 'बहुत्तरि' पुरषनी, जाणइ राग 'छतीस' । कला देखि सहु को कहइ, जीवो कोडिवरीस ॥४॥ "षड़ भाषा" भाषइ भली, “चवदह विद्या" लाध । लिखइ 'अठारह लिपी' सदा, सिगले गुणे अगाध ।। ५॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy