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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
कुंकुं हाथां दीजीयइ ए, सूहव धइ आसीस ।
कुमर धरमसी तणउए, जीवउ कोडि वरीस ॥४॥ फली० । गलिए फूल विछाइया ए, नाटक पडइ बत्रीस।
___ कुमर भलइ जनमियउ ए, हरख घणउ निसदीस ॥५॥फली० । जन्म महोछव इम करइ ए, खरचइ परघल दाम ।
सजल जलधर परइ ए, न गिणइ ठाम कुठाम ॥६॥फली०॥ याचक जय-जय उचरइ, सगा लहइ सनमान ।
. सयण संतोषिया ए, सखियां करइ गुणगान ।। ७ ।। फली। हिव दिन दसमइ आवियइ ए, करइ दसू ठुण प्रेम ।
सगा सहि निहतरइ ए, असुचि उतारइ एम ॥ ८ ॥फली० । सतर भक्ष भोजन भला ए, सालि दालि घृत घोल । ... सहू संतोषिया ए, उपरि सरस तंबोल ॥ ॥ फली० । एम जमाडि जुगतसुं ए, दिया नालेर सद्रूप ।
___ भलउ सहको भणइ ए, उछव कियउ अनूप ॥१०॥ फली० । धन 'धारलदे' मायडी ए, धन्न २ 'धरमसी' साह । कियउ उच्छव भलउ ए, लियइ लखमीरउ लाह ।। ११ ॥ फली० । दूहा:-करि उच्छव रलियामणउ, पुत्र तणउ मुख जोय । __ श्री खेतसी नामउ दियड, दीठां दउलति होय ।। १ ।। सहको लोक इसउ कहइ, सयणां तणइ समक्ख (क्ष )।
_ 'धरमसी' साह प्रतई हूयउ, परमेसर परतक्ख ।। २ ॥ कुलदीपक सुत जनमियउ, करिस्यइ कुल उद्धार ।
इणि नन्दन जाया पछइ, उदय हुअउ संसार ॥ ३॥
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