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________________ १५६ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह कुंकुं हाथां दीजीयइ ए, सूहव धइ आसीस । कुमर धरमसी तणउए, जीवउ कोडि वरीस ॥४॥ फली० । गलिए फूल विछाइया ए, नाटक पडइ बत्रीस। ___ कुमर भलइ जनमियउ ए, हरख घणउ निसदीस ॥५॥फली० । जन्म महोछव इम करइ ए, खरचइ परघल दाम । सजल जलधर परइ ए, न गिणइ ठाम कुठाम ॥६॥फली०॥ याचक जय-जय उचरइ, सगा लहइ सनमान । . सयण संतोषिया ए, सखियां करइ गुणगान ।। ७ ।। फली। हिव दिन दसमइ आवियइ ए, करइ दसू ठुण प्रेम । सगा सहि निहतरइ ए, असुचि उतारइ एम ॥ ८ ॥फली० । सतर भक्ष भोजन भला ए, सालि दालि घृत घोल । ... सहू संतोषिया ए, उपरि सरस तंबोल ॥ ॥ फली० । एम जमाडि जुगतसुं ए, दिया नालेर सद्रूप । ___ भलउ सहको भणइ ए, उछव कियउ अनूप ॥१०॥ फली० । धन 'धारलदे' मायडी ए, धन्न २ 'धरमसी' साह । कियउ उच्छव भलउ ए, लियइ लखमीरउ लाह ।। ११ ॥ फली० । दूहा:-करि उच्छव रलियामणउ, पुत्र तणउ मुख जोय । __ श्री खेतसी नामउ दियड, दीठां दउलति होय ।। १ ।। सहको लोक इसउ कहइ, सयणां तणइ समक्ख (क्ष )। _ 'धरमसी' साह प्रतई हूयउ, परमेसर परतक्ख ।। २ ॥ कुलदीपक सुत जनमियउ, करिस्यइ कुल उद्धार । इणि नन्दन जाया पछइ, उदय हुअउ संसार ॥ ३॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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