SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 332
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीजिनराजसूरि रास अति शीतल वाजइ वाय, दुखियांनइ पिण सुख थाय । गुणवन्त पुरुष जब जायइ, तब सगलउ जग सुख पायइ॥१७॥ मुंह माग्या वरसइ मेह, लोके २ निवड सनेह । - सगलइ जगि हुयउ सुगाल, गुणगावइ बालगोपाल ॥ १८ ॥ इम उच्छव सुं अधरात, सुखसज्या सूती मात । 'धारलदे' नन्दन जायउ, सूरिज जिम तेज सवायउ ॥१६॥ दूहाः-वइसाखा सुदि (सातमा !) दिन,सोलहसय सईताल । __ श्रवण नक्षत्र सुहामणउ, बुधवार (इ) सुविशाल ।।१।। पंच उंच ग्रह आविया, छत्र जोग सुखकार । शुभवेला सुत जन्मयिउ, वरत्यउ जय-जयकार ॥२॥ चन्द्र अनइ सूरिज थकी, सुत नउ अधिकउ तेज। रत्नपुंज जिमि दीपतउ, सोहइ माता सेज ॥३॥ ढाल चौथी, वधावारी :दासी आवि दौड़ति ए, जिण (हां ?) छइ 'धरमसी' शाह । वधाइ पुत्रनी ए-दीधी मन उमाह ॥ १ ॥ फली आसा सहू ए, जायउ पुत्र रतन । फलि० । कीजइ कोडि जतन० फली०, 'धरमसी' साह धन धन्न० ॥फलो०।। उदयउ पूरब पुन्य, फली आस्या सहू ए । आं० । सुत दीठइ दुख वीसर्या ए, वाजइ ताल कंसाल ।। दमामा दुडवडी ए, वाजइ वनर माल |॥ २ ॥ फली० ॥ वाजइ थाली अति भली ए, बाजइ जोगी ढोल | हवइ उच्छव घणाए, गीतां ग रमझोल ॥ ३ ॥ फली० । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy