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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
सुणिय श्री जिनवर वाणि, मन लागी अमिय समाणि ।
ध्याउ श्री अरिहन्त देव, कीजइ सहगुरुकी सेव ॥ ६ ॥ कर्म रोग गमेवा ओसउ, कीजइ पडिक्रमणउ पोसउ । मनशुद्धि ध्यावु नवकार, दुखियां नइ करू उपगार ।। ७ ।। वन वाग जइ उछरंग, प्रीतम सुं कीजइ रंग |
मनमान्या वरसइ मेह, तउ फलइ मनोरथ एह ॥ ८ ॥ 'विमलाचल' नइ 'गिरनार', 'सम्मेतसिखर' सिरदार |
ताल:
भेटू 'आबू' सुखकारी, पूजा करु 'सतर' - प्रकारी ॥ ६ ॥ -जा 'खाजा' लापसी आही, वलि लाडु लाखणसाही | परसुं खुरसाणि मेवा, कीजइ साहमीनी सेवा ॥ १० ॥ धन खरची नाम लिखावु', 'सात क्षेत्रे' वित्त वावुं ।
तिम दुखित दोन साधारू, इणि परि आपड निसतारू ||११|| इम डोहला पामइ जेह, 'धरमसी' शाह पूरइ तेह |
उत्तम नर गरभइ आयउ, माता पिण आनंद पायउ ।। १२ ।। जब पापी गरभइ आवs तउ मात खिहाला खावइ ।
कइ ठिकरि ना खाइ खण्ड, कई खायइ भींत लवंड ॥ १३ ॥ एतउ गरभ सदा सुकमाल, फलि मात मनोरथ माल ।
गुणवन्त हुइ ए आगइ तिन सहको पाये लागइ ॥ १४ ॥ माता मनि घणउ सनेह, सुख देस्यइ नन्दन एह ।
खाउ खाउ नवि खायइ, इम काल सुखे करि जायइ ||१५|| दित सात अनइ नव मास, पूरउ थयउ गरभावास ।
फल फूले दहदिशी फलियां, माता मन हुइ रङ्गरलियां ||१६||
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