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________________ १५४ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह सुणिय श्री जिनवर वाणि, मन लागी अमिय समाणि । ध्याउ श्री अरिहन्त देव, कीजइ सहगुरुकी सेव ॥ ६ ॥ कर्म रोग गमेवा ओसउ, कीजइ पडिक्रमणउ पोसउ । मनशुद्धि ध्यावु नवकार, दुखियां नइ करू उपगार ।। ७ ।। वन वाग जइ उछरंग, प्रीतम सुं कीजइ रंग | मनमान्या वरसइ मेह, तउ फलइ मनोरथ एह ॥ ८ ॥ 'विमलाचल' नइ 'गिरनार', 'सम्मेतसिखर' सिरदार | ताल: भेटू 'आबू' सुखकारी, पूजा करु 'सतर' - प्रकारी ॥ ६ ॥ -जा 'खाजा' लापसी आही, वलि लाडु लाखणसाही | परसुं खुरसाणि मेवा, कीजइ साहमीनी सेवा ॥ १० ॥ धन खरची नाम लिखावु', 'सात क्षेत्रे' वित्त वावुं । तिम दुखित दोन साधारू, इणि परि आपड निसतारू ||११|| इम डोहला पामइ जेह, 'धरमसी' शाह पूरइ तेह | उत्तम नर गरभइ आयउ, माता पिण आनंद पायउ ।। १२ ।। जब पापी गरभइ आवs तउ मात खिहाला खावइ । कइ ठिकरि ना खाइ खण्ड, कई खायइ भींत लवंड ॥ १३ ॥ एतउ गरभ सदा सुकमाल, फलि मात मनोरथ माल । गुणवन्त हुइ ए आगइ तिन सहको पाये लागइ ॥ १४ ॥ माता मनि घणउ सनेह, सुख देस्यइ नन्दन एह । खाउ खाउ नवि खायइ, इम काल सुखे करि जायइ ||१५|| दित सात अनइ नव मास, पूरउ थयउ गरभावास । फल फूले दहदिशी फलियां, माता मन हुइ रङ्गरलियां ||१६|| GP Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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