________________
श्रीजिनराज सूरि रास
१५३ हीयडइ हरख थयउ घणउरे, सुणियउ सुपन विचार । प्री० सु० । तहत्ति करी उठि तदारे, पहुंती भुवन मंझार प्री०प० ॥१२॥प्री०वी० दहा-घरि (भुवन?) आवी इम चिंतवइ, अजेसीम बहु रात ।
धरम जागरि जागतां, प्रकटाणउ परभात ॥ १ ॥ जे भणिया बहुत्तरि-कला, भणिया वेद पुराण ।
प्रहउगइ घर तेडिया, जोसी ज्योतिष जांण ॥ २ ॥ 'श्रीधर' 'धरणीधर' सही, जोसी 'विठ्ठलदास'।
___ पहरी खीरोदक धोतीया,आव्या मन उल्लासि ॥ ३ ॥ संतोष्या जोसी कहइ, सुपन तणउ फल एह ।
- कुलदीपक सुत होइस्यइ, कूड कहां तउ नेम ॥४॥ इम फल सुपन तणउ सुणी, किया उच्छव असमान ।
सनमान्या जोसी सहु, दिया अनर्गल दान ॥५॥ ढालतोजी:-मनि मेघकुमर पछतावी ।। ए जाति । हिव दोजह दान अनेक, परियण मांहे बध्यउ विवेक ।
सुरलोक थकी सुर चवियउ, धारलदे उरि अवतरिउ ॥ १॥ बधिवा लागउ परिवार, माता हरखि तिणवार ।
राजा पिण घइ सन्मान, तिग दिन थी वधियउ वान ।। २॥ इम गरभ बधइ सुखदाइ, तसु महिमा कहयि न जाइ ।
मास त्रीजइ दोहला पावइ, माता मनि घणुं सुहावइ ।। ३ ॥ जाणइ चन्द्र पान करोजइ, भरि धुंट अमिरस पीजइ । ... वलि दान अनर्गल दीजइ, लखमी रो लाहो लीजइ ॥ ४ ॥ जिनवरनी कीजइ जात्र, घरि तेडी पोखं पात्र ।
खरचीजइ धन असमान, छोड़ावू बन्दीवान ॥५॥
Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org