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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह प्रीतमजी दिठउ स्वप्न उदार, प्रीतमजी कहउ नइ तासु विचार। प्रीतमजी थे पण्डित सिरदार ॥ आंकणी० ॥ चोवा चन्दन अरगजा रे, कसतूरि घनसार । प्री० कस्तूरि०। चिहुं दिशि परिमल महमहइ रे, इन्द्र भुवन आकार ॥प्री० इन्द्र॥२ दमणा पाडल केतकी रे, जाइ जुही सुविशाल । प्री० । जा०। फूल तिहां महकइ घणा रे, तिम फुलांरी माल ॥ प्रीति०।३।प्री०बो। दहदिशी दीवा झलहलइ रे, चन्द्रूअडा चउसाल। प्री० चं०। भीतइ चीतर भिख्या भला रे, वारू वन्नरमाल ।। प्री० वा०१४। प्री० मनहर मोती जालियां रे, करइ कली उजास । प्री० क० । पुन्य पखइ किम पामीयइ रे, एहवा सखर आवास । प्री०ए०१५/प्री०। 'धारलदे' पउढि तिहां रे, कोइ न लोपइ लीह । प्री० को० । किउं सूती किउं जागती रे, दीठइ सुहणे सीह ।। प्री० दी०।६। प्री० सुहणउ देखी सुहामणउं रे, पामइ हरख अपार । प्री० पा० । स्वप्न तणउ फल पूछिवा रे, वीनवीयउ भरतार ।। प्री० वि० ॥७॥ प्री० अमृत समो वाणि सुणीरे, जाग्या 'धरमसी' साह । प्री० जा० । पुण्ययोग जाणे मिली रे, साकर दूधहि माहि ॥ प्री० सा० ॥८प्री०। धरि आणंद इसउ कहइ रे, सखरउ लहयउ सुपन्न । प्री० स० । सूरवीर विद्यानिलउ रे, हुइस्यइ पुत्र रतन ॥ प्री० हु०। प्री० । कुलदीपक बोहित्थरां रे, अन्ति हुस्यइ राजांन । प्री० अं० । सिंह तणी परि साहसी रे, थास्यइ पुत्र प्रधान ॥ प्रो० था० ।१०पी०। गरभकाल पूरउ हुस्ये रे, सात दिवस नव मास । प्री० सा०। पुत्र मनोहर जनमिस्यइ रे, फलिस्यै मन नी आस ॥प्री० म०।११प्री०
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