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श्रीजिनराजसूरि रास
१५१ 'कोडि' द्रव्य दीधा याचकां, 'लाहोर' नयर उच्छाह । श्री 'जिनचन्द' युगवर कीया, पत्तगरियउ 'पतिशाहि' ॥१७॥ मेरी। ___'नव' गाम नइ 'नव' हाथीया, तिहां दिया द्रव्य अनेक । श्री जिनसिंहसूरिंद' नइ, आचारिज सविवेक ॥१८॥ मेरी।
'रायसिंघ' राजा राज पालइ, मंत्रवी तिहि 'कर्मचंद' । सहू को लोक सुखइ बसइ, दिन-दिन अधिक आणंद ॥१६॥मेरी०॥
दूहा- वसइ तिहां व्यवहारिउ, सोभागो सिरदार ।
धर्म धुरन्धर 'धर्मसी', वोहिथ कुल सिणगार ॥१॥ दुखियां नउ पीहर सदा, धर्मी नइ धनवंत ।
____ कुल मंडण महिमा निलउ, गुणरागी गुणवन्त ।। २ ।। पतिभक्ता नइ गुणवती, शीयलवती वरियाम ।
मनहर नारो तेहनइ, 'धारलदे' इणि नाम ॥३॥ भणि जाणइ चउसठि कला, रूपइजीती रंभ।
एहवी नारि को नहि, अदूभूत रूप अचम्भ ॥४॥ दोगंदक सुरनी परड, सही सगला संजोग ।
___ निज प्रीतम साथइ सदा, विलसइ नव-नव भोग ॥५॥ ढाल वीजी-मांहका जोगना न कहिज्योरे अरदास । ए जाति। उत्तम गृह मांहि (ए) कदा रे, पउठि 'धारल' देवि । प्रीतमजी । पउ० झबकइ मोती झुबका रे, सुख सज्या नित मेव ॥ प्री० सु०।१। प्रीतमजी बोलइ अमृत वाणि, प्रीतमजी बोलइ कोयल वाणि । प्रीतमजी तुं मेरउ सुलताण, प्रीतमजी तुं तो चतुर सुजाण ।
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