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________________ श्री समय सुन्दरोपाध्यायानां गीतम् araण करि अणगार संवत सतरे हो, सय बिडोत्तरे । 'अहमदाबाद' मझार परलोक पहुंचा हो, चैत्र शुदि तेरसे ॥ २० ॥ बादीगज दल सींह पाट प्रभाकर हो, प्रतपे तेहने । 'हरषनन्दन' अणवीह पण्डित मांही हो, लीह काढी जिणे ॥ ११ ॥ प्रगट जासु परिवार भाग्यवन्त मोटो हो, वाचक जाणीये । दिन-दिन जय-जयकार जग जिरंजीवो हो,' राजसोम' इम कहे || १२||* [ इति महोपाध्याय समयसुन्दरजी गीतं ] -> १४६ ॥ श्रीयशकुशल सुगुरु गीतम् ॥ ॥ राग काफी ॥ 'श्री यशकुशल' मुनीसर (नागुण) गावो तुम्ह सुखकारी । सहु जनने सुखसातादायक, विघ्न विडारण हारी || १ || २० || ठाम ठाम महिमा सद्गुरुनी, जाणे लोक लुगाइ । तिम वलि इण देशे सविशेषै, कहतां नावै काई ||२||२०|| भर दरियावै समरण करतां, हाथे कर ऊबारै । ध्यान धरै इक मन जे साचौ, तेहना कारज सारै || ३ ||२०|| 'कनकसोम' पाटे उदयाचल, श्री 'यशकुशल' मुणिन्द । दिन दिन अधिको साहिब सोहे, जिम ग्रह माहिं चंद ||४||२०|| महिर करी नइ दीजइ दरिशन, जोजइ सेवक सार । 'सुखरतन' कहै कर जोड़ी नै, भवि भवि तूं ही आधार || ५ ||२०|| * यह गीत बाहड़मेर के यति श्री नेमिचन्द्रजीसे प्राप्त हुआ है । एतद उन्हें धन्यवाद देते हैं । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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