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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
राजसोम कृत महोपाध्याय समयसन्दरजी तिम्
(३)॥ ढाल हांजरनी॥ नवखंडमें जसु नाम पंडित गिरुआहो, तर्क व्याकर्ण भण्या। अर्थ किया अभिराम पदएकणराहो, आठ लाख आकरा ॥१॥ साधु बड़ो ए महन्त 'अकबर' शाहे हो, जेह वखाणीयो। 'समयसुन्दर' भाग्यवंत पातिशाह पू(तू)ठोहो,थापलि इम कह्योरे।।२।। जीवदया जशलीध राउल रंजी हो, 'भीम' 'जेशलगिरि'। करणो उत्तम कीध 'सांडा' छोड़ाया हो, देशमें मारता ।।३।। 'सिद्धपुर' मांहे शेख 'महम्मद' मोटो हो, जिण प्रतिवोधीयो। सिन्धु देश मांहे विशेष 'गायां' छोडावी हो, तुरके मारती ॥ ४ ॥ सखर वस्त्र पटकूल गच्छ पहरायो, खरतर गरुअडो। बचनकला अनुकूल प्रबंध देखी हो, शास्त्र कीधाघणां ।। ५ ।। पर उपगार निमित्ति कोधो सगलो हो,धन-धन इम कहे। गीत छंद बहु वृत्ति कलियुग माहे हो, जिणे शाको कियो ॥ ६ ॥ जुगप्रधान 'जिनचन्द' स्वयंहस्त वाचक हो, पद 'लाहोरे' दियो। 'श्रीजिनसिंहसूरिंद' शहर 'लवेरे' हो, पाठक पद कीयो ॥ ७ ॥ आगम अर्थ अगाह सम्मुख साचो हो, जेणे प्ररुपीयो। गिरुओ गुरु गजगाह परिवार पूरो हो, जेहनो परगड़ो ।। ८ ॥ कीधो क्रियाउद्धार संवत सोले हो, इक्काणु समे । गौतमने अणुहार पंचाचार पाले हो, घणु वली खप करे ॥ ६ ॥
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