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श्री समयसुन्दर उपाध्यायानां गीतम्
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कवि देवीदास कृत
(२) रागः-आसावरी सिन्धुड़ो “समयसुन्दर' वाणारस वंदिये, सुललित वाणि वखाणो जी । राय रंजण गीतारथ गुणनिलो जो,महिमा मेरू समाणो जी |स०॥१॥ अरथ करी 'अकबर' मन रीझव्यो, बलि कहूबीजी बातो जी। "जेसलमेर'सांडा जीवछोड़ाव्या, रावल करि रलिआतो जी।स॥२॥ 'शीतपुर' मांहें जिण समझावियो, 'मखनूम' महमद सेखो जी। जीवदया परा पडह फेरावियो,राखी चिहुंखंड रेखो जी ।।साशा दड़ दिवाने सगले दीपता, संघ घणो सोभागो जी। माने मोटा राणा राजिया, वणारीस बडभागो जी ॥स०॥४॥ सद्गुरु सिगलो गच्छ पहिरावियो, लोक मांहे यश लीधो जी। "हर्षनन्दन' सरखा शिष्य जेहने, 'वादो' विरुद प्रसिद्धो जी।।स०॥५॥ जन्मभूमि ‘साचोरे जेहनी, वंश 'पोरवाड़' विख्यातो जी। मातु 'लीलादे' 'रूपसी' जनमिया, एहवा गुरु अवदातो जी।स०॥६॥ (श्री) 'जिनचन्दसूरि' संइहथे दीखिया, 'सकलचन्द' गुरु शीशो जी। 'समयसुंदर' गुरु चिर प्रतपै सदा, चै 'देवीदास' आसीसो जी||साणा
॥ इति श्रीसमयमुंदरोपायायानां गीतद्वयं ॥ [ हमारे संग्रहमें तत्कालीन लि० प्रति, पत्र १ से ]
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