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________________ १४६ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह वादी हर्षनन्दनकृत श्री समयसुदर उपाध्यायानां गीतम् ( १ ) राग ( मारूणी ) साच 'सावोरे' सद्गुरु जनमिया रे, 'रूपसीजीरा' नंद । नवयौवन भर संयम संग्रह्योजी, सहथ 'श्रीजिनचंद ' ॥ १ ॥ भले रे विराज्यो उपाध्याय देशमें रे, 'समयसुन्दर' सरदार | अधिक प्रतापी व जिम विस्तरे रे, शिष्य शाखा परिवार || भले || २ | चवदै विद्या आपण अभ्यसी रे, पण्डित राय पडूर । छोड़ाया सांडा मयणे मारता रे, राउल 'भीम' हजूर || भले ||३|| 'लाहाउरे' 'अकबर' रंजियो रे, आठ लाख अरथ दिखाड़ । वाचक पदवी पण पामी तिहां रे, परगड़ वंश 'पोरवाड़' || भले ०||४|| सिन्धु विहारे लाभ लियड घणो रे, रंजी 'मखनूम' सेख | पांचे नदियां जीवदया भरी रे, राखी धेनु विशेष || भले ० ||५|| पहिराया पूरा मुनिवर गच्छ ना रे, प्रणमे भूपति पाय । बजड़ाव्या वाजा ताजा मेड़ता रे, रंजी मंडोवर राय ||भले० || ६ || वाल्हो लागे चतुर्विध संघ ने रे, 'सकलचंद' गणि शीश । 'हर्षनंदन' सुजगीश || भले ० ||७|| बड़वखती वादी सदा रे, Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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