________________
श्रीसाधुकीत्ति स्वर्गगमन गीतम्
जयनिधान कृत साधुकीर्ति गुरु स्वर्गगमन गतिम् सुखकरण श्रीशांति जिणेसरू, समरी प्रवचन बचनए जी। सोहण सुहगुरु गाईए, नि..............................."नभाए जी ॥शा चतुर सिरोमणि भावई वंदीयइ, 'श्रीसाधुकीरति' उवझायो जी। प्रहसमि भवियण कामित सुरतरू, खरतरगच्छ गुरुरायोजी ॥०॥ संवत सोल बतोसइ सुह दिनइ, 'श्रीजिनचंद्रसूरिंदो' जी । माधव मासई सुदि पुनम थापिया, पाठक पद आणंदो जी ॥
२०॥ सु कुल 'सचिंती' श्रीगुरु उपना, 'खेमलदे' उरि हंसो जी। 'वस्तपाल' पिता जसु जाणिये, मुनिजन महिं अवतंसो जी ॥३॥०॥ नाण चरण गुण सयल कला धरू, जश परिमल सुविसालो जी। 'अमरमाणिक्य' गुरु पाटई दीपता, अठमि शशिदल भालो जी।४ाचा गाम नयर पुरि विहरी महीयलई, पडिवोही जणवृन्दो जी। सोल छयालइ आया संवतइ, पुरि 'जालोर' मुर्णिदो जी ॥५॥०॥ माह बहुल पखि अणसण उच्चरि, आणी निय मन ठामो जी।
......" ॥६॥०॥ आउ पूरी चउदसि दिन भलइ, पहुता तब सुरलोक जी। धुंभ अपूर्व कियउ गुण (रु?)तणउ, प्रणमीजइ बहुलोक जी ।।णाच॥ इण कलिकाले श्रीगुरु जे नमइ, भाव धरी नरनारी जी। समकित निर्मल हुइ वलि तेहनई, धन कण सुत सुखकारी जी चाच०॥ धन धन 'साधुकीर्ति' रलियामणा, सबही नाम सुहाए जी। पाय कमल जुग नितु तस प्रणमतां, घरि घरि मंगल थाए जी।।च०। उलट आणी सहगुरु गाइया, वाचक 'रायचंद्र' सीसि जी । आसा पूरण सुरमणि सुरगवी, 'जयनिधान' सुह दीसि जी ॥१०॥च०॥
Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org