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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
चालि:
मिलि पहुतावी चापसि, बट्टी छई जिहां आवासि ।
आदर तह अधि ( क ?) उंदीधउं, गुरु मंत्रि चित्त वसि कीधरं ॥ ४१ ॥ चामल मेघइ वात बनाइ, अकबर रे तिहां लीया बुलाइ ।
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परवत नेमीदास हजूर, दोजई बाजा हुकम पडूर ||४२ || अउलोमा पातिसाहि तूट्टुडं, सहाथि थापि लीडं पूठई ।
सभ बाजा जइत बजावउं, अपणां पोरह कुं बधावउँ ||४३|| खोजा छडीदार पट्टाया, खरतर साचा जस पाया ।
भेरि मद्दल ढोल नीसाणा, वाज्या चढ्यो वोल प्रमाण ||४४ || संघ मेलि मिल्य आणंदई, गुरु सोहइ श्रीसंघ वृन्दई ।
बाजार आगरई केरइ, पइसारउं कीधउं भलेरई ॥४५॥ खरतरै जइत पद पायो, मागत जन सहु अबुलायडं ।
पंच वरण व बाइ अनेक, पहिराया संधि विवेक ||४६ || हाय तपलो सहु जाणई, खरतर कं लोक वखाणई ।
साखी भट्ट छई इण बातई, खरतर परव शुद्ध विख्याते ||४७॥ जिनदत्त कुशल सानिद्धई, जिनभद्रसूरि वंश वृद्धईं ।
जिनचंद्रसूरि सुप्रसादइ, खरतरे जीतउं इण वाद ॥४८॥ दया "अमर माणिक्य" गुरु सीस, साधुकीर्त्ति लही जगीस । मुनि "कनकसोम" इम आखई, चढविह श्रीसंघकी साख || ४ || ( तत्कालीन लिखित पत्र ३ संग्रह में )
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