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कवि कनकसोमकृत जइत पद वेलि
साहि सुगत दीयइ साबासि, खरतर मनि अधिक उल्हास । बुद्धिसागर कछु न जाणईं, साहि साधुकीर्त्ति कुं बखाणइ ||३१|| पंडित सभ (ब? भा?) बोलई एम, निर्णय कीधो छै जेम । खरतर गच्छ कउं पक्ष साच, तपला पखि कोइ न राचउ ||३२|| मूढ़ पंडित सम किम होइ, पातिसाह विचार्यो जोइ ।
तब पद्मसुंदर बोलायड, लुकि रह्यो सभा मांहि नाव्यो ||३३|| चप पोष थाप्यो, खरतर कुं जयपद आप्यो ।
गजबजीया खरतर लोक, ऋषिमती थया सब फोक ||३४|| विण हुकम भेरि हु (दु ?) इं वावई, तपा राति दीवी ले आवई । पातिसाह सुणी ए बात, तपलाउं करउं निपात ||३५||
चाइमल मेघई छोड़ाया, मान भंग करी कढ़वाया |
तपला कहई सर भरि कीजई, दुरि (इ?) भेरि हुकम इन्द दीजई ||३६||
दूहाः—
खरतर मनहि विचारीयो, एह बात किम होइ ।
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जीती वाजी हारीयई, करउं पराक्रमकोइ ||३७||
घोधू चाइमल्ल नेतसी, मेघउ पारस साह ।
नेमिदास धणराज सहजसिंघ, गंगदास भोज अगाह ||३८|| श्रीचंद श्रीवच्छ अमरसी, दरगह परबत वखाण ।
छाजमल गढ़मल भारहू रेडउं सामीदास सुजाण ॥ ३६ ॥ atara ( ? ) री तिहि मिल्या, महेवचा संषवाल ।
श्रावक सभ (ब?) तेडावीया, महिम के कोटीवाल ||४०||
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